कैबिनेट ने राष्ट्रीय खनिज उत्खनन नीति को मंजूरी प्रदान की

कैबिनेट ने राष्ट्रीय खनिज उत्खनन नीति को मंजूरी प्रदान की
      
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राष्ट्रीय खनिज उत्खनन नीति (एनएमईपी) को स्वीकृति प्रदान की है।
एनएमईपी का प्रमुख उद्देश्य निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाकर देश में उत्खनन गतिविधियों को तेज करना है। खनिजों की पूर्ण संभावनाओं को सामने लाने के लिए देश में व्यापक खनिज उत्खनन की जरूरत है, जिससे राष्ट्र के खनिज संसाधनों (गैर ईंधन और गैर कोयला) का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल हो सके और भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र के अंशदान को बढ़ाया जा सके।
नीति वैश्विक मानकों के अनुरूप बेसलाइन भू-वैज्ञानिक आंकड़ों को सार्वजनिक करने, सार्वजनिक-निजी साझेदारी में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान, गहरे और छिपे हुए भंडारों की खोज, देश के त्वरित हवाई भू-भौतिक सर्वेक्षण की विशेष पहलों और एक समर्पित भू-विज्ञान डाटाबेस आदि के निर्माण पर जोर देती है।
एनएमईपी में देश में उत्खनन को आसान बनाने के लिए मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. खनन मंत्रालय चिह्नित खनिज ब्लॉकों की निजी क्षेत्र में नीलामी कराएगा। यह नीलामी राजस्व साझेदारी आधार पर होगी। नीलाम ब्लॉकों से आने वाला राजस्व सफल बोलीदाता को मिलेगा। 2.यदि उत्खनन एजेंसियां नीलाम योग्य संसाधनों की खोज नहीं कर पाती हैं तो उनके उत्खनन व्यय की प्रतिपूर्ति मानकीय लागत आधार पर की जाएगी।

3.बेसलाइन भू-वैज्ञानिक डाटा का निर्माण सार्वजनिक वस्तु के तौर पर किया जाएगा, जिसे बिना किसी शुल्क के भुगतान के देखा जा सकेगा।
4.सरकार लक्षित खनिज भंडारों के स्टेट-ऑफ-द-आर्ट बेसलाइन डाटा को प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय हवाई भू-भौतिक कार्यक्रम चलाएगी।
5. एक नेशनल जिओसाइंटिफिक डाटा रिपॉजिटरी की स्थापना का प्रस्ताव है, जो विभिन्न केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों व खनिज कंसेशन होल्डर्स से मिलने वाली बेसलाइन और खनिज उत्खनन से जुड़ी जानकारियों की तुलना करेगी और इनका जिओस्पेटियल डाटाबेस पर इनका रखरखाव करेगी।
6. सरकार का वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और उद्योग की भागीदारी से देश में खनिज उत्खनन की चुनौतियों के समाधान के लिए वैज्ञानिक और तकनीक अनुसंधान के लिए एक स्वायत्त गैर लाभकारी संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव है जो नेशनल सेंटर फॉर मिनरल टारगेटिंग (एनसीएमटी) के नाम से जाना जाएगा।
7.आकर्षक राजस्व साझेदारी मॉडल के माध्यम से उत्खनन में निजी निवेश को आमंत्रित करने के लिए प्रावधान।
8. ऑस्ट्रेलिया की ‘अनकवर’ परियोजना की तर्ज पर सरकार की नेशनल जिओ फिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और प्रस्तावित एनसीएमटी और जिओसाइंस ऑस्ट्रेलिया के साथ भागीदारी के माध्यम से देश में गहरे/छिपे हुए खनिज भंडारों की खोज की एक विशेष पहल शुरू करने की योजना है।
एनएमईपी की सिफारिशों को लागू करने के क्रम में 5 साल के दौरान शुरुआती तौर पर लगभग 2,116 करोड़ रुपये और खनन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सालाना योजनागत बजट के अंतर्गत अतिरिक्त धन की जरूरत होगी। एनएमईपी से देश के पूरे खनिज क्षेत्र को फायदा होगा।
एनएमईपी के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(1) सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए एक पूर्व-प्रतिस्पर्धी बेसलाइन जिओ भू-वैज्ञानिक डाटा तैयार किया जाएगा और यह बगैर शुल्क इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा। इससे निजी और सरकारी उत्खनन एजेंसियों को लाभ होने का अनुमान है।
(2) सार्वजनिक और निजी साझेदारी में उत्खनन के लिए वैज्ञानिक और तकनीक विकास को आवश्यक बनाने के लिए वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और उद्योग के साथ भागीदारी।
(3) देश में गहरे/छिपे हुए खनिज भंडारों की खोज के लिए सरकार ने एक विशेष योजना पेश की। इस योजना के मुख्य भागों में भारत के भूगर्भीय क्षेत्र, भारत के भूमंडलीय क्षेत्र की जांच, 4डी जिओ डायनैमिक और मेटालॉजेनिक इवॉल्युशन आदि शामिल हैं।
(4) पूरे देश के मानचित्रीकरण के लिए एक राष्ट्रीय हवाई भू-भौतिक मानचित्रिकरण कार्यक्रम पेश किया जाएगा, जिससे गहरे और छिपे हुए खनिज भंडारों की पहचान की जा सकेगी।
(5) सरकार चिह्नित ब्लॉक/क्षेत्रों में उत्खनन के लिए निजी एजेंसियों को जोड़ेगी।
(6) क्षेत्रीय और विस्तृत उत्खनन पर सार्वजनिक व्यय की प्राथमिकता तय की जाएगी और अहम और रणनीतिक हित के आधार पर समय-समय पर समीक्षा की जाएगी।
पृष्ठभूमिः
हाल में खनन मंत्रालय ने खनिज क्षेत्र के विकास के लिए 100 प्रतिशत एफडीआई सहित कई विशेष पहल की हैं। हालांकि इन पहलों को सीमित सफलता ही मिली है। इसके अलावा बीते कई साल में खनिज क्षेत्र में खासा बदलाव हुआ है, जिससे नई मांग और जरूरतें पैदा हुई हैं। देश में उत्खनन गतिविधि में तेजी लाना जरूरी है। इसे देखते हुए सरकार ने अपनी उत्खनन नीति और रणनीति की व्यापक समीक्षा की। एमएमडीआर अधिनियम में 2015 में किए गए संशोधन इसी दिशा में उठाया गया कदम था। इसकी सबसे अहम विशेषता यह है कि खनन पट्टे (एमएल) और संभावित लाइसेंस-कम-खनन पट्टे (पीएल-कम-एमएल) को सिर्फ निविदा प्रक्रिया के माध्यम से दिए जाएंगे। इससे खनिज कंसेशंस के आवंटन की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, तेजी और सरलीकरण होगा। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए एनएमईपी को संशोधित कानूनी ढांचे के मद्देनजर नए उद्देश्यों को देखते हुए तैयार किया गया है।

Source : pmindia.gov.in

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