Text of PM’s address at the Kumbh Global Participation Event

Prime Minister's Office

Text of PM’s address at the Kumbh Global Participation Event

Posted On: 23 FEB 2019 4:00PM by PIB Delhi

मंच पर विराजमान हमारे देश के विदेश मंत्री और देश की पहली विदेश मंत्री, महिला विदेश मंत्री बहन सुषमा स्‍वराज जी, जनरल वी. के. सिंह, विनय सहस्रबुद्धे जी और दुनिया के अनेक देशों से आए हुए सभी महानुभव मैं आपका बहुत हृदय से स्‍वागत करता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तो मैं स्‍वागत करता ही हूं लेकिन कल आप जहां जाकर के आए हैं उस उत्‍तर प्रदेश से मैं लोकसभा का प्रतिनिधि हूं और इसलिए तो भी मैं विशेष रूप से आपका आदरपूर्वक स्‍वागत करता हूं।

हमारे देश में हिंदू परंपरा में एक मान्‍यता रही है कि जब कोई तीर्थयात्रा करके आता है अगर उसको आप नमस्‍कार करते हैं तो तीर्थयात्रा में जो पुण्‍य उसने कमाया है उसका कुछ हिस्‍सा नमस्‍कार करने वाले को भी मिलता है तो मेरे लिए खुशी है कि आप सब एक अनमोल सांस्‍कृतिक विरासत की तीर्थयात्रा करके आए हैं और आज आपके दर्शन का मुझे मौका मिला, तो जो पुण्‍य आप कमा करके लाए हैं उसका थोड़ा हिस्‍सा मुझे भी मिला है।

आप मुझसे ज्‍यादा भाग्‍यशाली हैं क्‍योंकि मैं इस बार के कुंभ में अब तक जा नहीं पाया हूं आप होकर के आए हैं लेकिन मैं कल जाने वाला हूं। शायद ही ऐसा कोई कुंभ होगा जबसे मैं समझने लगा हूं कि जहां मुझे जाने का सौभाग्‍य न बना हो, कल भी मैं जाऊंगा। 

कुंभ का मेला जब तक वहां जाते नहीं है तब तक अंदाज नहीं आता है कि कितनी बड़ी विरासत है ये और हजारों वर्ष से निश्चित डेट एंड टाइम के अनुसार, टाइम टेबल के अनुसार ये चल रही है। कोई इनविटेशन कार्ड नहीं होता है। न कोई गेस्‍ट होता है, न कोई होस्‍ट होता है। फिर भी मां गंगा के चरणों में और जहां भी कुंभ होता है वहां सारे देश के और दुनिया के तीर्थयात्री वहां पहुंचते है। ये असामान्‍य चीज है, कि किसी भी प्रकार की कागज, चिट्ठी, पत्र के बिना हजारों साल से लोग यहां पहुंचते है।

और आप जिस कुंभ को देखकर बड़े प्रभावित हुए हैं, आपके मन को वो छू गया है लेकिन ये भी आपको पता हो कि पूर्ण कुंभ नहीं है, अर्धकुंभ की अगर ये ताकत है तो जब पूर्ण कुंभ होगा वो कैसा होता होगा जिसका आप अनुमान लगा सकते है।

सांस्‍कृतिक रूप से भारत में एकता को बहुत बड़ा बल दिया गया है। ये समागम अब एक प्रकार से स्पिरिचुअल इन्स्पॅरेशॅन के लिए तो है ही है लेकिन ये सोशल रिफॉर्मेशन का मूवमेंट का एक हिस्‍सा है। एक प्रकार से ये उस जमाने की पंचायत है, उस जमाने की जो भी डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क होगा क्‍योंकि समाज जीवन में काम करने वाले स्पिरिचुअल लीडर हो सोशल लीडर हो  academicians हो वे तीन साल तक अपने-अपने क्षेत्र में भ्रमण करते थे, लोगों से मिलते थे, संवाद करते थे और तीन साल में एक बार छोटा कुंभ होता था वहां सब अपने बैठ करके 40-45 दिन तक विचार विमर्श करते थे, हिन्‍दुस्‍तान के किस कोने में क्‍या चल रहा है। और उसमें से कोई न कोई बात तय करते थे। और 12 साल में एक बार 12 साल के period का पूरा review करके 12 साल के बाद समाज को किस प्रकार से guidance की जरूरत है, समाज में कौन से बदलाव की जरूरत है एक प्रकार से perfect democratic system  था, नीचे से ऊपर information जाती थी और socio, political, religious leader including Kings राजा महाराजा भी उसमें रहते थे और इस विचार विमर्श में से आगे का 12 साल का रोडमैप तैयार होता था और हर तीन साल पर उसका review होता था।

ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है जो दुनिया के सामने कभी आई ही नहीं। आपने इस बार भी देखा होगा, इस कुंभ के मेले में भी कोई न कोई सटीक social message था। सर्वसामान्‍य की भलाई के लिए message था। और वहां पर आपने कोई भेदभाव नहीं देखा होगा। हर कोई गंगा का अधिकारी है, गंगा में डूबकी लगाता है। अपनी आस्‍था के अनुसार अपना क्रियाकलाप करता है।

भारत टूरिज्‍म का एक destination इसलिए बनने जा रहा है क्‍योंकि विश्‍व एक शांति की तलाश में है। व्‍यक्तिगत जीवन की आपाधापी से भी वो कुछ पल अपने लिए, अपने इंटरनल के लिए बिताना चाहता है। धन, वैभव, समृद्धि बढि़या होटल ये सारी चीजें उसको प्रभावित तो करती हैं, प्रेरित नहीं करती हैं उसको, इम्प्रेसिव वर्ल्ड से वो ऊब चुका है। वो इन्स्पाइरिंग वर्ल्ड की खोज में है।

और आपने कुंभ में अनुभव किया होगा कि भौतिक संपदा की कमी के बावजूद भी एक अंर्तमन के आनंद को कैसे खोजा जा सकता है, संजोया जा सकता है और उससे जीवन की राह बनाई जा सकती है। वो आपने भली-भांति अपनी आंखों से देखा होगा।

और मुझे विश्‍वास है कि आप जब अपने देश लौटोगे तो वहां भांति-भां‍ति के लोग आपसे पूछेगें कि आखिर था क्‍या... क्‍या एक नदी के अंदर डुबकी लगाने के लिए आप इतना खर्चा करके चले गए वहां, कई लोगों को आश्‍चर्य होता है कि इसमें क्‍या है? लेकिन जब आप वहां का दृश्‍य देखोगे और makeshift arrangement तो भारत की organizing capacity  का level क्‍या है। ये अपने आप में आपने अनुभव किया होगा।

मुझे बताया गया कि डेली वहां हजारों की तादाद में मिसिंग पर्सन या मिसिंग चाइल्ड की information सेंटर पर आती है। क्‍योंकि इतने करोड़ो लोग होते हैं तो कभी एकाध बच्‍चा हाथ से छूट जाता है कोई बुजुर्ग रह जाता है। फिर इतनी भीड़ में पता नहीं चलता है। वहां इतना perfect mechanism है कि घंटे दो घंटे में वो missing की complaint आते ही उसको खोजकर के उसे परिवार से मिला दिया जाता है। कोई कल्‍पना कर सकता है?

हर दिन गंगा के तट पर एक प्रकार से यूरोप का एक देश इकट्ठा होता है daily और सारी व्‍यवस्‍थाएं makeshift arrangement में हो रही है यानी जो management के students हैं universities हैं, उनके लिए ये case study का विषय है। कि इतनी बड़ी मात्रा में लोग अपने अपने तरीके से आए हैं, अपनी आदतों को लेकर के आए हैं, अपनी भाषा को लेकर के आए हैं। लेकिन एक ऐसी व्‍यवस्‍था जो सबको cater कर रही है, स‍बको संभाल पा रही है और सबकी आशा अपेक्षा पूरी कर रही है। ये अपने आपमें management की दुनिया की ये बहुत बड़ी घटना है।

और विश्‍व का इस तरफ ध्‍यान जाएगा और मैं भारत के विदेश मंत्रालय का विशेष करके सुषमा जी का हृदय से अभिनंदन करता हूं। कि जो कुंभ का मेला यानी एक टास्‍क जिसको लगता था कि हां....हां भई ठीक है लोग आते हैं.. जाते हैं लेकिन इसका एक सामाजिक स्‍वरूप होता है। उसका एक managerial aspect होता है, उसमें आधुनिकता होती है technology होती है, व्‍यवस्‍था होती है और श्रद्धा भी होती है, सांस्‍कृतिक चेतना भी होती है।

ये अदभुत मिलन का कार्यक्रम दुनिया के लोगों ने जब आज देखा है और भारत ने इस प्रकार का ये पहला प्रयास किया है। आपने आकर के हमारे इस प्रयास को सफल बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। इसलिए आप भी अभिनंदन के अधिकारी हैं। आपका भी मैं बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

भारत में जिस प्रकार से भारत की जो सांस्‍कृतिक विरासत है, ये विश्‍व को आकर्षित करने का अभुतपूर्व सामर्थ्‍य है उसमें और हम इस पर प्रतिबद्ध हैं। इस प्रकार की योजनाओं के द्वारा हम दुनिया को भारत की इस महान विरासत के साथ भी जोड़ना चाहते हैं।

और मुझे विश्‍वास है कि विश्‍व भारत की आधुनिक भारत की भी पहचान करेगा और अनमोल विरासत से भी भारत से दुनिया परिचित होने के लिए प्रयास करेगी। आने वाले दिनों में हमारे यहां parliament के इलेक्‍शन होने वाले हैं। जैसा कुंभ का मेला है उसकी management, makeshift arrangements वहां का पूरा technology के द्वारा व्‍यवस्‍थाएं, ये अपने-आप में एक आकर्षण का केंद्र है। वैसे ही more than 800 million लोग वोट करें, निष्‍पक्षता से वोट करें। उसका पूरा जो mechanism है दुनिया का सबसे बड़ा ये चुनाव होता है। दुनिया का सबसे बड़ा.. और मेरा तो ये प्रयास रहेगा... मैंने तो election commission से भी कहा है कि विश्‍व का हर देश भारत का election tourism के लिए निकले.. हिन्‍दुस्‍तान के टूरिज्‍म को देखे और सिर्फ वोटिंग के दिन नहीं कोई मार्च महीने में आए, कोई मार्च के 2nd week में आए, कोई मार्च के 3rd week में आए, कोई अप्रैल में आए, कोई मई में आए लगातार दुनिया के हर देश के दो-दो प्रतिनिधि हर हफ्ते यहां हो, हजारों की तादाद में विश्‍व के लोग आएं, कि भारत में democracy कितनी लोगों के रगो में है।



भारत में गांव में बैठा हुआ व्‍यक्ति भी किस प्रकार से देश की चीजों की समझ रखता है, किस प्रकार से देश के संबंध में निर्णय करता है। विश्‍व के लिए भारत का चुनाव अपने-आपमें अजूबा है। अगर मेरे कुंभ की इतनी बड़ी ताकत है कि managerial capacity को प्रदर्शित करता है तो मेरे देश के चुनाव की रचना, चुनाव का आयोजन और इतना बड़ा democratic participation। विश्‍व में democracy में विश्‍वास करने वाले लोगो के लिए भी ये प्रेरणा देता है। और democracy की ओर  जो अभी नहीं पहुंच पाए हैं उनके लिए भी प्रेरणा का कारण बन सकता है। तो मैं चाहूंगा कि मेरे देश का election commission initiate करे, हमारे विदेश मंत्रालय उनको पूरी तरह से मदद करे। और दुनिया भर की यूनिवर्सिटी, दुनिया भर के स्टूडेंट्स, दुनिया भर के डेमोक्रेटस ये सारे लोग जो लोकतंत्र में विश्‍वास करते हैं वो आने वाले दिनों में लोकतंत्र का जो कुंभ होने वाला है उसे भी यहां आए देखें। और भारत के सामान्‍य मानवी का लोकतंत्र के प्रति commitment जो है, भारत के सामान्‍य मानवी का मानवी मूल्‍यों के प्रति commitment जो है उसको अपनी आंखों से देखें और दुनिया को संदेश दें कि भारत हम जो सोचते हैं, सुनते हैं किसी की नजर से जो देखा है हमने अपनी नजर से एक दूसरा हिन्‍दुस्‍तान देखा है, असली हिन्‍दुस्‍तान देखा है, सामर्थ्‍यवान हिन्‍दुस्‍तान देखा है और विश्‍व को कुछ देने का सामर्थ्‍य रखने वाला हिन्‍दुस्‍तान देखा है।

आपने जब अक्षयवट देखा होगा, भारत के लोगों के लिए अक्षयवट एक श्रद्धा का कारण होगा, लेकिन मान लीजिए उस श्रद्धा से आपका परिचय न भी हो तो आपको इतना तो पता चलेगा कि देश कितना प्रकृति प्रेमी है। कि हजारों साल से एक वृक्ष के प्रति आस्‍था रखने वाला वो समाज पेड़ और पौधों में भी परमात्‍मा देखता है अगर उस समाज को कोई समझे तो विश्‍व को कभी climate change or global warming की समस्‍याएं झेलनी नहीं पड़ती, अगर इन बातों को हम पहले से समझते। वो सिर्फ एक वृक्ष के दर्शन नहीं थे। वो भारत के लोग शायद उसकी mythology जानते हैं, भारत के लोगों के लिए वो होगा लेकिन जो mythology को नहीं जानते हैं उनके लिए ये सामर्थ्‍य है कि हम पौधे में भी परमात्‍मा देखते हैं। और हम प्रकृति के प्रति इतने सहजीवन के अभ्यस्त हैं। सहजीवन के साथ साथ प्रकृति के प्रति अपार श्रद्धा रखने वाले लोग हैं जो मानव जाति की बहुत अनिवार्यता है। आज प्रकृति के साथ संघर्ष के कारण मानव जात जो संकटों में फंसी हुई है उससे निकलने का रास्‍ता भी इसी महान परंपरा ने दिया है। चाहे अक्षयवट का दर्शन हो, नदी के प्रति श्रद्धा की बात हो, up-to-date management की बात हो, किसी भी पहलू से देखें दुनिया के लिए ये case study है, यूनिवर्सिटीज के लिए case study है और भारत के प्रति आर्कषण बढ़ाने के लिए, भारत की महान परंपराएं, मानव जात के कल्‍याण का रास्‍ता दिखाने वाली परंपराएं है इस दृष्टि से भी बड़ा महत्‍वपूर्ण है। ऐसे महत्‍वपूर्ण अवसर पर आपका आना मेरे लिए बहुत ही गर्व का विषय है, आनंद का विषय है।

मैं फिर एक बार आप सबका हृदय से स्‍वागत करता हूं और जितना भी समय आपका यहां बिताने का मौका मिलेगा आप जरूर भारत को जानने समझने के लिए उस समय का उपयोग करेंगें और अपने देश में जाकर के दुनिया को बताएंगे कि आपने जो सुना है उससे हिन्‍दुस्‍तान कुछ और है। हिन्‍दुस्‍तान कुछ अधिक है, आप जो हिन्‍दुस्‍तान जानते हो पुरातन जानते हो। यही हिन्‍दुस्‍तान है जो आने वाले दिनों में भी मानव जात को दिशा देने का सामर्थ्‍य रख सकता है। आप सच्‍चे अर्थ में भारत की इस महान परंपरा के ambassador बनकर के वापिस लौटेंगे यही मेरी आप सबको शुभकामनाएं है।                         
बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Source : PIB

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