प्रधानमंत्री द्वारा दो आयुर्वेद संस्थान देश के नाम समर्पित
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज आयुर्वेद दिवस पर भविष्य के लिए तैयार दो आयुर्वेद संस्थान को विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से राष्ट्र के नाम समर्पित किया है. आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए), जामनगर और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए), जयपुर इनमें शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने इस अवसर पर एक वीडियो संदेश दिया और आयुष्मान भारत के तहत व्यापक कवरेज के लिए प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता और स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पारंपरिक दवाओं के प्रमाण-आधारित प्रचार की सराहना की।
प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद दिवस पर भविष्य के लिए तैयार दो आयुर्वेद संस्थान राष्ट्र को समर्पित किएपारंपरिक औषधि के वैश्विक केन्द्र के लिए भारत के चयन हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन को धन्यवाद दियाअंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाले आयुर्वेद पाठ्यक्रम की मांग कीआयुर्वेद न केवल विकल्प है बल्कि देश में स्वास्थ्य का मुख्य आधार है : प्रधानमंत्रीकोरोना काल में आयुर्वेद के उत्पादों के इस्तेमाल और अनुसंधान पर जोर दिया गया है
13 NOV 2020
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 5वें आयुर्वेद दिवस पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भविष्य के लिए तैयार दो आयुर्वेद संस्थान राष्ट्र को समर्पित किए। आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए), जामनगर और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए), जयपुर इनमें शामिल हैं। दोनों संस्थान देश में अग्रणी संस्थान हैं। संसद के एक अधिनियम द्वारा आईटीआरए, जामनगर को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया गया है और एनआईए, जयपुर को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एक मान्य विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है। आयुष मंत्रालय 2016 से धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) के अवसर पर हर साल ‘आयुर्वेद दिवस’मना रहा है।
केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद नाइक, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत, राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत इस अवसर पर उपस्थित थे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने इस अवसर पर एक वीडियो संदेश दिया और आयुष्मान भारत के तहत व्यापक कवरेज के लिए प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता और स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पारंपरिक दवाओं के प्रमाण-आधारित प्रचार की सराहना की। ग्लोबल सेंटर ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन के लिए भारत के चयन को लेकर प्रधानमंत्री ने विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा उसके महानिदेशक को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक भारतीय विरासत है और यह खुशी की बात है कि भारत का पारंपरिक ज्ञान अन्य देशों को भी समृद्ध कर रहा है।
श्री मोदी ने आयुर्वेद के ज्ञान को पुस्तकों, शास्त्रों और घरेलू उपचारों से बाहर लाने और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार इस प्राचीन ज्ञान को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन चिकित्सा ज्ञान के साथ 21वीं सदी के आधुनिक विज्ञान से प्राप्त जानकारी को मिलाकर देश में नए अनुसंधान किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन साल पहले, अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान यहां स्थापित किया गया था। आयुर्वेद आज केवल एक विकल्प नहीं है, बल्कि देश की स्वास्थ्य नीति का एक महत्वपूर्ण आधार है।
श्री मोदी ने बताया कि लेह में सोवा-रिग्पा से संबंधित अनुसंधान और अन्य अध्ययनों के लिए राष्ट्रीय सोवा-रिग्पा संस्थान विकसित करने पर काम चल रहा है। आजगुजरात और राजस्थान में जिन दो संस्थानों का उन्नयन किया गया है, वे भी इस विकास का विस्तार हैं।
दोनों संस्थानों को उनके उन्नयन के लिए बधाई देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके पास अब अधिक जिम्मेदारी है और आशा है कि वे आयुर्वेद पाठ्यक्रम तैयार करेंगे, जो अंतर्राष्ट्रीय मानक को पूरा करता है। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी का आह्वान करते हुए कहा कि आयुर्वेद भौतिक विज्ञान और आयुर्वेद रसायन विज्ञान जैसे विषयों में नए अवसरोंकी तलाश की जाए। उन्होंने वैश्विक रुझानों और मांगों का अध्ययन करने के लिए स्टार्टअप और निजी क्षेत्र का भी आह्वान करते हुए कहा कि वे इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग और राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग की स्थापना इस सत्र में संसद द्वारा की गई थी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी एक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। इस नीति की मूल धारणा यह है कि आयुर्वेदिक शिक्षा में एलोपैथिक परंपराओं का ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने बताया कि कोरोना अवधि के दौरान पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष सितम्बर में आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्यात में लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि रोग प्रतिरक्षक माने जाने वाले हल्दी, अदरक जैसे भारतीय मसालों के निर्यात में महत्वपूर्ण वृद्धि सेयह पता चलता है कि विश्व भर में आयुर्वेदिक समाधानों में लोगों का विश्वास अचानक बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अबकई देशों में, हल्दी से संबंधित विशेष पेय भी बढ़ रहे हैं और दुनिया की प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिकाओं को भी आयुर्वेद में नई आशा दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि इस कोरोना अवधि के दौरान, हमारा ध्यान केवल आयुर्वेद के उपयोग तक ही सीमित नहीं था, बल्कि देश और दुनिया में आयुष से संबंधित अनुसंधान को आगे बढ़ाने पर भी था।
प्रधानमंत्री ने आज कहाकिएक तरफभारत टीकों का परीक्षण कर रहा है, दूसरी तरफयह कोविडसे लड़ने के लिए आयुर्वेदिक अनुसंधान पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान दिल्ली सहित सौ से अधिक स्थानों पर 80,000 दिल्ली पुलिस कर्मियों पर प्रतिरक्षण से संबंधित अनुसंधान चल रहा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा सामूहिक अध्ययन हो सकता है और इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में कुछ और अंतर्राष्ट्रीय परीक्षण शुरू किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज आयुर्वेदिक दवाओं, जड़ी-बूटियों के साथ-साथ रोग प्रतिरक्षण बढ़ाने वाले पौष्टिक खाद्य पदार्थों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहाकिआज किसानों को गंगा के किनारे और हिमालयी क्षेत्रों में मोटे अनाज के साथ-साथ जैविक उत्पादों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय भारत के लिए एक व्यापक योजना पर काम कर रहा है ताकि दुनिया की भलाई में अधिक से अधिक योगदान हो, हमारे निर्यात में भी वृद्धि होनी चाहिए और हमारे किसानों की आय भी बढ़नी चाहिए। उन्होंने बताया कि कोविडमहामारी की शुरुआत के बाद, अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी आदि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के दाम बहुत बढ़ गए हैं। अश्वगंधा की कीमत पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो गई है और जड़ी-बूटियों की खेती करने वाले हमारे किसानों को इसका सीधा लाभ पहुंच रहा है।
प्रधानमंत्री ने कृषि मंत्रालय, आयुष मंत्रालय या अन्य विभागों से भारत में उपलब्ध कई जड़ी-बूटियों की उपयोगिता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि आयुर्वेद से संबंधित संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास से देश में स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कामना करते हुए कहा कि आज जामनगर और जयपुर में जिन दो संस्थानों का उद्घाटन किया गया है, वे इस दिशा में भी लाभदायक साबित होंगे।
आईटीआरए, जामनगर:संसद के एक अधिनियम द्वारा हाल मेंस्थापित आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए)विश्व स्तर की स्वास्थ्य सेवा संस्थान के रूप में उभर सकता है। आईटीआरएमें 12 विभाग, तीन नैदानिक प्रयोगशालाएं और तीन अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं। यह पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य में अग्रणी हैऔर फिलहाल यह 33 अनुसंधान परियोजनाओं का संचालन कर रहा है। गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय परिसर, जामनगर में चार आयुर्वेद संस्थानों के समूह को मिलाकर आईटीआरएका गठन किया गया है। यह आयुष क्षेत्र में पहला संस्थान है, जिसके पास राष्ट्रीय महत्व का संस्थान का दर्जा है। उन्नत दर्जे के साथ, आईटीआरए को आयुर्वेद शिक्षा के मानक को उन्नत करने की स्वायत्तता होगी, क्योंकि यह आधुनिक, अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार पाठ्यक्रम उपलब्ध करेगा। इसके अलावा, यह अंतःविषय सहयोग के बारे में आयुर्वेद को समसामयिक तौर पर जोर देने के लिए प्रेरित करेगा।
एनआईए, जयपुर: देश में व्यापक ख्याति वाले आयुर्वेद संस्थान, एनआईए को मान्य विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है। पिछले कुछ दशकों में प्रामाणिक आयुर्वेद को संरक्षित करने, बढ़ावा देने और आगे बढ़ाने में एनआईए के 175 साल की विरासत का योगदान महत्वपूर्ण है। फिलहाल एनआईए के पास 14 विभिन्न विभाग हैं। संस्थान में 2019-20 के दौरान 955 छात्रों और 75 संकायों के साथ छात्र-शिक्षक का एक बहुत अच्छा अनुपात है। यह प्रमाणपत्र से डॉक्टरेट स्तर तक के आयुर्वेद में कई पाठ्यक्रम चलाता है। अत्याधुनिक प्रयोगशाला सुविधाओं के साथ, एनआईए भी अनुसंधान गतिविधियों में अग्रणी रहा है। वर्तमान में, यह 54 विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं का संचालन करता है। मान्य विश्वविद्यालय के दर्जे के साथ, यह राष्ट्रीय संस्थान तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अनुसंधान में उच्चतम मानकों को प्राप्त करके नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए तैयार है।
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Source: PIB
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