Text of PM's address at the National Day programme of Bangladesh
आज बंगलादेश के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्वप्रथम बांग्लादेश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया और उसके बाद उन्होंने कहा कि इसी साल भारत-बांग्लादेश की मैत्री के 50 साल पूरे हुए हैं.
Prime Minister's Office
Text of PM's address at the National Day programme of Bangladesh
Posted On: 26 MAR 2021
नोमोश्कार !
Excellencies,
बांग्लादेश के राष्ट्रपति
अब्दुल हामिद जी,
प्रधानमन्त्री
शेख हसीना जी,
कृषि मंत्री
डॉक्टर मोहम्मद अब्दुर रज्जाक जी,
मैडम शेख रेहाना जी,
अन्य गणमान्य अतिथिगण,
शोनार बांग्लादेशेर प्रियो बोंधुरा,
आप सभी का ये स्नेह मेरे जीवन के अनमोल पलों में से एक है। मुझे खुशी है कि बांग्लादेश की विकास यात्रा के इस अहम पड़ाव में, आपने मुझे भी शामिल किया। आज बांग्लादेश का राष्ट्रीय दिवस है तो शाधी-नौता की 50वीं वर्षगाँठ भी है। इसी साल ही भारत-बांग्लादेश मैत्री के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। जातिर पीता बॉन्गोबौन्धु शेख मुजिबूर रॉहमान की जन्मशती का ये वर्ष दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत कर रहा है।
Excellencies
राष्ट्रपति अब्दुल हामिद जी, प्रधानमन्त्री शेख हसीना जी और बांग्लादेश के नागरिकों का मैं आभार प्रकट करता हूं। आपने अपने इन गौरवशाली क्षणों में, इस उत्सव में भागीदार बनने के लिए भारत को सप्रेम निमंत्रण दिया। मैं सभी भारतीयों की तरफ से आप सभी को, बांग्लादेश के सभी नागरिकों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मैं बॉन्गोबौन्धु शेख मुजिबूर रॉहमान जी को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने बांग्लादेश और यहाँ के लोगों के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। हम भारतवासियों के लिए गौरव की बात है कि हमें, शेख मुजिबूर रॉहमान जी को गांधी शांति सम्मान देने का अवसर मिला। मैं यहां अभी इस कार्यक्रम में भव्य प्रस्तुति देने वाले सभी कलाकारों की भी सराहना करता हूं।
बोन्धुगोन, मैं आज याद कर रहा हूं बांग्लादेश के उन लाखों बेटे बेटियों को जिन्होंने अपने देश, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति के लिए अनगिनत अत्याचार सहे, अपना खून दिया, अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी। मैं आज याद कर रहा हूं मुक्तिजुद्धो के शूरवीरो को। मैं आज याद कर रहा हूं शहीद धीरेन्द्रोनाथ दत्तो को, शिक्षाविद रॉफिकुद्दीन अहमद को, भाषा-शहीद सलाम, रॉफ़ीक, बरकत, जब्बार और शफ़िऊर जी को!
मैं आज भारतीय सेना के उन वीर जवानों को भी नमन करता हूं जो मुक्तिजुद्धो में बांग्लादेश के भाई -बहनों के साथ खड़े हुये थे। जिन्होंने मुक्तिजुद्धो में अपना लहू दिया, अपना बलिदान दिया, और आज़ाद बांग्लादेश के सपने को साकार करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा, जनरल अरोरा, जनरल जैकब, लांस नायक अल्बर्ट एक्का, ग्रुप कैप्टेन चन्दन सिंह, कैप्टन मोहन नारायण राव सामंत, ऐसे अनगिनत कितने ही वीर हैं जिनके नेतृत्व और साहस की कथाएं हमें प्रेरित करती हैं। बांग्लादेश सरकार द्वारा इन वीरों की स्मृति में आशुगॉन्ज में War Memorial समर्पित किया गया है।
मैं इसके लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ। मुझे खुशी है कि मुक्तिजुद्धो में शामिल कई भारतीय सैनिक आज विशेषकर से इस कार्यक्रम में मेरे साथ उपस्थित भी हैं। बांग्लादेश के मेरे भाइयों और बहनों, यहां की नौजवान पीढ़ी को मैं एक और बात याद कराना चाहूंगा और बड़े गर्व के साथ याद दिलाना चाहता हूं। बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में उस संघर्ष में शामिल होना, मेरे जीवन के भी पहले आंदोलनों में से एक था। मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी जब मैंने और मेरे कई साथियों ने बांग्लादेश के लोगों की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था।
बांग्लादेश की आजादी के समर्थन में तब मैंने गिरफ्तारी भी दी थी और जेल जाने का अवसर भी आया था। यानि बांग्लादेश की आजादी के लिए जितनी तड़प इधर थी, उतनी ही तड़प उधर भी थी। यहां पाकिस्तान की सेना ने जो जघन्य अपराध और अत्याचार किए वो तस्वीरें विचलित करती थीं, कई-कई दिन तक सोने नहीं देती थीं।
गोबिंदो हालदर जी ने कहा था-
‘एक शागोर रोक्तेर बिनिमोये,
बांग्लार शाधीनोता आन्ले जारा,
आमरा तोमादेर भूलबो ना,
आमरा तोमादेर भूलबो ना’,
यानि, जिन्होंने अपने रक्त के सागर से बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई, हम उन्हें भूलेंगे नहीं। हम उन्हें भूलेंगे नहीं। बोन्धुगोन, एक निरंकुश सरकार अपने ही नागरिकों का जनसंहार कर रही थी।
उनकी भाषा, उनकी आवाज़, उनकी पहचान को कुचल रही थी। Operation Search-light’ की उस क्रूरता, दमन और अत्याचार के बारे में विश्व में उतनी चर्चा नहीं की है, जितनी उसकी चर्चा होनी चाइये थी। बोन्धुगोन, इन सबके बीच यहां के लोगों और हम भारतीयों के लिए आशा की किरण थे - बॉन्गोबौन्धु शेख मुजिबूर रॉहमान ।
बॉन्गोबौन्धु के हौसले ने, उनके नेतृत्व ने ये तय कर दिया था कि कोई भी ताकत बांग्लादेश को ग़ुलाम नहीं रख सकती।
बॉन्गोबौन्धु ने ऐलान किया था-
एबारेर शोंग्राम आमादेर मुक्तीर शोंग्राम,
एबारेर शोंग्राम शाधिनोतार शोंग्राम।
इस बार संग्राम मुक्ति के लिए है, इस बार संग्राम आजादी के लिए है। उनके नेतृत्व में यहां के सामान्य मानवी, पुरुष हो या स्त्री हो, किसान, नौजवान, शिक्षक, कामगार सब एक साथ आकर मुक्तिवाहिनी बन गए।
और इसलिए आज का ये अवसर, मुजिब बोर्षे, बॉन्गोबौन्धु के vision, उनके आदर्शों, और उनके साहस को याद करने का भी दिन है। ये समय "चिरो बिद्रोहि” को, मुक्तिजुदधो की भावना को फिर से याद करने का समय है। बोन्धुगोन, बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम को भारत के कोने-कोने से, हर पार्टी से, समाज के हर वर्ग से समर्थन प्राप्त था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी के प्रयास और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सर्वविदित है। उसी दौर में, 6 दिसंबर, 1971 को अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था- "हम न केवल मुक्ति संग्राम में अपने जीवन की आहूति देने वालों के साथ लड़ रहे हैं, लेकिन हम इतिहास को एक नई दिशा देने का भी प्रयत्न कर रहे हैं। आज बांग्लादेश में अपनी आजादी के लिए लड़ने वालों और भारतीय जवानों का रक्त साथ-साथ बह रहा है।
यह रक्त ऐसे संबंधों का निर्माण करेगा जो किसी भी दबाव से टूटेंगे नहीं, जो किसी भी कूटनीति का शिकार नहीं बनेंगे”। हमारे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी प्रणब दा ने कहा था बॉन्गोबौन्धु को उन्होंने एक tireless (टायरलेस) statesman कहा था। उन्होंने कहा था कि शेख मुजिबूर रॉहमान का जीवन, धैर्य, प्रतिबद्धता और आत्म-संयम का प्रतीक है।
बोन्धुगोन, ये एक सुखद संयोग है कि बांग्लादेश के आजादी के 50 वर्ष और भारत की आजादी के 75 वर्ष का पड़ाव, एक साथ ही आया है। हम दोनों ही देशों के लिए, 21वीं सदी में अगले 25 वर्षों की यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमारी विरासत भी साझी है, हमारा विकास भी साझा है।
हमारे लक्ष्य भी साझे हैं, हमारी चुनौतियाँ भी साझी हैं। हमें याद रखना है कि व्यापार और उद्योग में जहां हमारे लिए एक जैसी संभावनाएं हैं, तो आतंकवाद जैसे समान खतरे भी हैं। जो सोच और शक्तियां इस प्रकार की अमानवीय घटनाओं को अंजाम देती हैं, वो अब भी सक्रिय हैं।
हमें उनसे सावधान भी रहना चाहिए और उनसे मुकाबला करने के लिए संगठित भी रहना होगा। हम दोनों ही देशों के पास लोकतन्त्र की ताकत है, आगे बढ़ने का स्पष्ट विज़न है। भारत और बांग्लादेश एक साथ मिलकर आगे बढ़ें, ये इस पूरे क्षेत्र के विकास के लिए उतना ही जरूरी है।
और इसलिए, आज भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों की सरकारें इस संवेदनशीलता को समझकर, इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रही हैं। हमने दिखा दिया है कि आपसी विश्वास और सहयोग से हर एक समाधान हो सकता है। हमारा Land Boundary Agreement भी इसी का गवाह है। कोरोना के इस कालखंड में भी दोनों देशों के बीच बेहतरीन तालमेल रहा है।
हमने SAARC Covid Fund की स्थापना में सहयोग किया, अपने ह्यूमन रिसोर्स की ट्रेनिंग में सहयोग किया। भारत को इस बात की बहुत खुशी है कि Made in India vaccines बांग्लादेश के हमारे बहनों और भाइयों के काम आ रही हैं। मुझे याद हैं वो तस्वीरें जब इस साल 26 जनवरी को, भारत के गणतंत्र दिवस पर Bangladesh Armed Forces के Tri-Service Contingent ने शोनो एक्टि मुजीबोरेर थेके की धुन पर परेड की थी।
भारत और बांग्लादेश का भविष्य, सद्भाव भरे, आपसी विश्वास भरे ऐसे ही अनगिनत पलों का इंतजार कर रहा है। साथियों, भारत-बांग्लादेश के संबंधों को मजबूत करने के लिए दोनों ही देशों के youth में बेहतर connect की भी उतना ही आवश्यक है। भारत-बांग्लादेश संबंधों के 50 वर्ष के अवसर पर मैं बांग्लादेश के 50 entrepreneurs को भारत आमंत्रित करना चाहूँगा।
ये भारत आयें, हमारे start-up और इनोवेशन eco-system से जुड़े, venture capitalists से मुलाकात करें। हम भी उनसे सीखेंगे, उन्हें भी सीखने का अवसर मिलेगा। मैं इसके साथ- साथ, बांग्लादेश के युवाओं के लिए शुबर्नौ जॉयंती Scholarships की घोषणा भी कर रहा हूं।
साथियों, बॉन्गोबौन्धु शेख मुजिबूर रॉहमान जी ने कहा था-
"बांग्लादेश इतिहाशे, शाधिन राष्ट्रो, हिशेबे टीके थाकबे बांग्लाके दाबिए राख्ते पारे, एमौन कोनो शोक़्ति नेइ” बांग्लादेश स्वाधीन होकर रहेगा।
किसी में इतनी शक्ति नहीं है कि बांग्लादेश को दबाकरके रख सके। बॉन्गोबौन्धु का ये उद्घोष बांग्लादेश के अस्तित्व का विरोध करने वालों को चेतावनी भी थी, और बांग्लादेश के सामर्थ्य पर विश्वास भी था। मुझे खुशी है कि शेख हसीना जी के नेतृत्व में बांग्लादेश दुनिया में अपना दमखम दिखा रहा है। जिन लोगों को बांग्लादेश के निर्माण पर ऐतराज था, जिन लोगों को बांग्लादेश के अस्तित्व पर आशंका थी, उन्हें बांग्लादेश ने गलत साबित किया है।
साथियों,
हमारे साथ काज़ी नॉजरुल इस्लाम और गुरुदेव रॉबिन्द्रोनाथ ठाकूर की समान विरासत की प्रेरणा है।
गुरुदेव ने कहा था-
काल नाइ,
आमादेर हाते;
काराकारी कोरे ताई,
शबे मिले;
देरी कारो नाही,
शहे, कोभू
यानि, हमारे पास गंवाने के लिए समय नहीं है, हमे बदलाव के लिए आगे बढ़ना ही होगा, अब हम और देर नहीं कर सकते। ये बात भारत और बांग्लादेश, दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
अपने करोड़ों लोगों के लिए, उनके भविष्य के लिए, गरीबी के खिलाफ हमारे युद्ध के लिए, आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए, हमारे लक्ष्य एक हैं, इसलिए हमारे प्रयास भी इसी तरह एकजुट होने चाहिए। मुझे विश्वास है भारत-बांग्लादेश मिलकर तेज गति से प्रगति करेंगे।
मैं एक बार फिर इस पावन पर्व पर बांग्लादेश के सभी नागरिको को अनेक अनेक शुभकामनाए देता हूँ और हृदय से आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद् करता हूं।
भारोत बांग्लादेश मोईत्री चिरोजीबि होख।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।
जॉय बांग्ला !
जॉय हिन्द !
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Source: PIB
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