Text of PM’s interaction with students, teachers and parents at "Pariksha Pe Charcha 2021”

Text of PM’s interaction with students, teachers and parents at "Pariksha Pe Charcha 2021”


अभी परीक्षा का समय चल रहा है, इस लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बच्चों से संपर्क करने के लिए एक नए इनोवेशन "परीक्षा पे चर्चा 2021" की शुरुआत की. यह इसका पहला वर्चुअल एडिशन है. उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से हम कोरोना से जूझ रहे हैं जिस कारण विद्यार्थियों की पढाई पर बहुत प्रभाव पड़ा है. भले ही हमने ऑनलाइन क्लास की सुविधा प्रदान की लेकिन जो पढाई स्कूल कॉलेज में जाकर होती थी वो ऑनलाइन नहीं हो पाती है. जिस कारण विद्यार्थियों पर कुछ ज्यादा ही बोझ पड़ गया है. इसी चिंता को दूर करने और आप लोगों का आत्मविश्वास बढाने के लिए आज "परीक्षा पे चर्चा" को शुरू किया गया है. 

Prime Minister's Office
Text of PM’s interaction with students, teachers and parents at "Pariksha Pe Charcha 2021”
07 APR 2021

नमस्कार, नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं आप सब? उम्मीद है परीक्षा की तैयारी अच्छी चल रही होगी? ये 'परीक्षा पे चर्चा' का पहला virtual edition है. आप जानते हैं, हम पिछले एक साल से कोरोना के बीच जी रहे हैं, और उसके कारण हर किसी को नया नया इनोवेशन करना पड़ रहा है. मुझे भी आप लोगों से मिलने का मोह इस बार छोड़ना पड़ रहा है, और मुझे भी एक नए फॉर्मेट में आपके बीच आना पड़ रहा है.

और आपसे रूबरू न मिलना, आपके चेहरे की खुशी न देखना, आपका उमंग और उत्साह न अनुभव करना, ये अपने आप में मेरे लिये एक बहुत बड़ा loss है. लेकिन फिर भी परीक्षा तो है ही है, आप है, मै हूं, परीक्षा है, तो फिर अच्छा ही है की हम परीक्षा पे चर्चा continue करेंगे. और इस साल भी break नहीं लेंगे.

अभी हम अपनी बातचीत का सिलसिला शुरू करने जा रहे हैं. एक बात मैं शुरू में ज़रुर देशवासियों को भी बताना चाहता हूँ. और guardians को बताना चाहता हूं, teachers को बताना चाहता हूं, ये 'परीक्षा पे चर्चा' है. लेकिन सिर्फ़ परीक्षा की ही चर्चा नहीं है. बहुत कुछ बातें हो सकती हैं. एक हल्का-फुल्का माहौल बनाना है. एक नया आत्मविश्वास पैदा करना है. और जैसे अपने घर में बैठकर बातें करते हैं, अपनों के बीच बात करते हैं, यार दोस्तों के साथ बात करते हैं, आइए हम भी ऐसे ही बात करेंगे आज.

Question- 1-A. 

M Pallavi, Govt. High School, Podili, Prakasam, Andhra Pradesh

नमस्कार honourable पी.एम. सर, (मोदीजी: नमस्कार नमस्कार)मेरा नाम एम. पल्लवी है, मैं 9 वीं कक्षा पढ़ रही हूं. सर, हम अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि पढ़ाई ठीक चल रही होती है लेकिन जैसे ही परीक्षाएं निकट आती हैं, बहुत ही तनावपूर्ण स्थिति हो जाती है. कृपया इसके लिए कोई उपाय बताएं सर. बहुत धन्यवाद सर.

धन्यवाद पल्लवी, मुझे बताया गया है कि इसी तरह का और भी एक सवाल है.

 Question-1-B. -

Arpan Pandey - Global India International School, Malaysia

सादर अभिनंदन आदरणीय प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम अर्पन पांडे है, मैं ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल मलेशिया में 12वीं कक्षा का छात्र हूं. मैं आपसे अपनी भावी भविष्य की सफलता हेतु एक प्रश्न के उतर की आकांक्षा करता हूं. और आशा करता हूं कि आप इसमें मेरा मार्गदर्शन करेंगे. मेरा प्रश्न है, परीक्षा की तैयारी के दौरान हमारे मन में आने वाले भय और तनाव से हम कैसे उभरें? कि क्या होगा अगर अच्छे अंक, और अच्छा कॉलेज मिलेगा या नहीं? धन्यवाद.

Answer-

पल्लवी, अर्पण, देखिए, आप जब, ये fear की, डर की बात करते हैं तो मुझे भी डर लग जाता है. अरे ऐसी कौन सी बात है जिसके लिए डरना चाहिए? क्या पहली बार एग्जाम देने जा रहे हो क्या? क्या पहले कभी एग्जाम दी नहीं? क्या आपको मालूम नहीं था की मार्च महीने, अप्रैल महीने में एग्जाम आती है.

सब पता है! पहले से पता है. सालभर पहले से पता है. अचानक तो नहीं आया है. और जो अचानक नहीं आया है, कोई आसमान नहीं टूट पड़ा है.

इसका मतलब हुआ कि आपको डर एग्जाम का नहीं है. आपको डर किसी और का है, और वो क्या है? आपके आसपास एक माहौल बना दिया गया है, कि यही एग्जाम सब कुछ है, यही ज़िंदगी है और इसके लिए पूरा सामाजिक वातावरण कभी-कभी स्कूल का वातावरण भी, कभी-कभी मां-बाप भी, कभी अपने रिश्तेदार भी, एक ऐसा माहौल बना देते हैं, ऐसी चर्चा करते हैं कि जैसे कोई बहुत बड़ी घटना से आपको गुजरना है. बहुत बड़े संकट से गुजरना है, मैं उन सबसे कहना चाहूंगा, ख़ासकर के मैं parents से कहना चाहता हूं, आपने क्या करके रख दिया है?

मैं समझता हूं की ये सबसे बड़ी गलती है. हम आवश्यक्ता से अधिक over conscious हो जाते हैं. हम थोड़ा ज्यादा ही सोचने लग जाते हैं. और इसीलिए मैं समझता हूं कि ज़िंदगी में ये कोई आखरी मुकाम नहीं है. ये ज़िंदगी बहुत लंबी है, बहुत पड़ाव आते हैं, एक छोटा सा पड़ाव है. हमें दबाव नहीं बनाना चाहिए, चाहे टीचर हो, student हो, परिवारजन हो, यार दोस्त हो. अगर बाहर का दबाव कम हो गया, खतम हो गया, तो एग्जाम का दबाव कभी महसूस नहीं होगा confidence फलेगा-फूलेगा, pressure release हो जाएगा decrease हो जाएगा और बच्चों को घर में सहज तनावमुक्त जीना चाहिए. छोटी-मोटी, हल्की-फुल्की बातें जो रोज करते थे करनी चाहिए.

देखिये दोस्तों, पहले क्या होता था, पहले मां-बाप बच्चों के साथ ज्यादा involve रहते और सहज भी रहते थे. और कई विषयों पर involve रहते थे. आज जो भी involve रहते हैं वो ज्यादातर करियर, एग्जाम, पढ़ाई किताब, syllabus, मैं उसको सिर्फ़ involvement नहीं मानता हूं. और इससे इन्हें अपने बच्चों के असली सामर्थ्य का पता नहीं होता है, अगर मां-बाप ज्यादा involved हैं तो बच्चों की रुचि, प्रकृति, प्रवृत्ति, इस सबको अच्छी तरह समझते हैं, और जो कमियां हैं उन कमियों को समझ करके उसे भरने की कोशिश करते हैं.

और उसके कारण बालक का confidence level बढ़ता है. उसकी strength मां-बाप को पता है, उसकी weaknesses मां-बाप को पता है. और उसके कारण मां-बाप समझते हैं कि ऐसे समय weakness को बाजू में करो strength को जितना बल दे सकते हो दो.

लेकिन आज कुछ मां-बाप इतने व्यस्त हैं, इतने व्यस्त हैं, कि उन्हें बच्चों के साथ real sense में involve होने का समय ही नहीं मिलता. इसका परिणाम क्या होता है? आज बच्चे के सामर्थ्य का पता लगाने के लिये parents को एग्जाम के results का sheet देखना पड़ता है. और इसलिए, बच्चों का आंकलन भी बच्चों के results तक ही सीमित हो गया है. Marks के परे भी, बच्चे में कई ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें parents mark ही नहीं कर पाते हैं.

साथियों, हमारे यहां exam के लिए एक शब्द है 'कसौटी'. मतलब, खुद को कसना है. ऐसा नहीं है Exam आख़िरी मौका है. बल्कि Exam तो एक प्रकार से एक लंबी ज़िंदगी जीने के लिये अपने आपको कसने का उत्तम अवसर है. एक opportunity है. समस्या तब होती है, जब हम एग्जाम को ही जैसे जीवन के सपनों का अंत मान लेते हैं. जीवन मरण का प्रश्न बना देते हैं. दरअसल एग्जाम जीवन को घड़ने का एक अवसर है. एक opportunity है, एक मौका है. उसे उसी रूप में लेना चाहिए. Actually, हमें अपने आप को कसौटी पर कसने के मौके खोजते ही रहना चाहिए. ताकी हम, और बेहतर कर सके हमें भागना नहीं चाहिए.

आइए दोस्तों, अगले सवाल की तरफ बढ़ते हैं.

Question- 2-A.       

Ms. Punyo Sunya - Vivekananda Kendra Vidyalaya, Papumpare, Arunachal Pradesh 

माननीय प्रधानमंत्रीजी, नमस्कार(मोदीजी : नमस्कार)मेरा नाम Punyo Sunya है, मैं कक्षा ग्यारहवीं की छात्र हूं, मेरे विद्यालय का नाम विवेकानंद केन्द्र विद्यालय है, District Papumpare, State - Arunachal Pradesh है.

माननीय प्रधानमंत्रीजी, कुछ Subjects और कुछ Chapters हैं, जिनको लेकर मैं सहज नहीं हूं, और उनसे पीछा छुड़ाने में लगी रहती हूं. मैं चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करूं, मैं उन्हें नहीं पढ़ पाती. शायद यह इसलिए है, क्योंकि मुझे उनसे डर लगता है. सर इस स्थिति को कैसे दूर किया जा सकता है? धन्यवाद सर.

चलिए, आन्ध्र से हम मलेशिया, मलेशिया से अब अरुणाचल पहुंच गए और मुझे बताया गया है कि इसी प्रकार का कोई और एक सवाल भी है.

Question- 2-B

Ms. Vineeta Garg, SRDAV Public school, Dayanad Vihar, Delhi

(मोदीजी: नमस्कार)माननीय प्रधानमंत्री श्री नमस्कार, मेरा नाम विनीता गर्ग है, और में SRDAV Public school में पच्चीस वर्ष से कार्यरत हूं. मेरा प्रश्न है, कुछ subjects ऐसे हैं, जिनमें कई Students को डर का सामना करना पड़ता है, इस वजह से वो इनसे बचते हैं. इसके बारे में इतिहास या गणित जैसे विषयों के शिक्षक अच्छी तरह से समझ सकते हैं. टीचर के तौर पर इस स्थिति को और बेहतर बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

Answer-

ये कुछ अलग प्रकार का ही विषय मेरे सामने आया है, मैं कोशिश करूंगा कि students के मन को छू सकूं और टीचर्स की बात पर गौर के साथ कुछ समाधान बता सकूं. आप दोनों ने किसी खास subjects या chapter से डर की बात कही है. आप लोग अकेले नहीं हैं जिनको इस स्थिति का सामना करना पड़ता हो. हकीकत तो ये है कि दुनिया में एक भी इंसान ऐसा नहीं मिलेगा जिसके ऊपर ये बात लागू न होती हो.

मान लीजिए आपके पास बहुत ही बढ़िया 5-6 शर्ट हैं, लेकिन आपने देखा होगा 1 या 2 शर्ट आपको इतने पसंद आते होंगे, बार-बार पहनते हैं इसका मतलब ये नहीं बाकी बेकार हैं, फिटिंग ठीक नहीं है, ऐसा नहीं है, वो दो इतने अच्छे लगते हैं कि आप उसको बार-बारपहनते हैं. कई बार तो मां-बाप भी इन चीजों को लेकर गुस्सा करते हैं कि कितनी बार इसको पहनोगे? अभी दो दिन पहले तो पहना था.

पसंद-नापसंद मनुष्य का स्वभाव है और कभी-कभी पसंद के साथ लगाव भी हो जाता है. अब इसमें डर की, दुविधा की, क्या बात है कि हमने डरना चाहिए.

दरअसल होता क्या है, जब आपको कुछ चीजें ज्यादा अच्छी लगने लगती हैं, तो उनके साथ आप बहुत comfort हो जाते हो, बहुत comfortable लगता है वो, सहज हो जाते हैं. लेकिन जिन चीजों के साथ आप सहज नहीं होते, उनके तनाव में आपकी 80 प्रतिशत energy, आप उसी में लगा देते हैं. और इसलिए students से मैं यही कहूंगा कि आपको अपनी energy को equally distribute करना चाहिए. सभी विषयों में बराबर-बराबर, आपके पास पढ़ाई के लिए 2 घंटे हैं, तो उन घंटों में हर Subject को समान भाव से पढ़िए. अपने समय को equal distribute करिए.

साथियों, आपने देखा होगा टीचर्स, माता-पिता हमें सिखाते हैं कि जो सरल है वो पहले करें. ये आमतौर पर कहा जाता है. और Exam में तो ख़ासतौर पर बार-बार कहा जाता है कि जो सरल है उसको पहले करो भाई. जब टाइम बचेगा तब वो कठिन है उसको हाथ लगाना. लेकिन पढ़ाई को लेकर मैं समझता हूं, ये सलाह आवश्यक नहीं है. और उपयोग भी नहीं है. मैं जरा इस चीज को अलग नजरिए से देखता हूं.

मैं कहता हूं कि जब पढ़ाई की बात हो, तो कठिन जो है उसको पहले लीजिए, आपका mind fresh है, आप ख़ुद fresh हैं, उसको attend करने का प्रयास कीजिए. जब कठिन को attend करेंगे तो सरल तो और भी आसान हो जाएगा.

मैं अपना अनुभव बताता हूं, जब मैं मुख्यमंत्री था, जब प्रधानमंत्री बना, तो मुझे भी बहुत कुछ पढ़ना पड़ता है, बहुत कुछ सीखना पड़ता है. बहुतों से सीखना पड़ता है. चीजों को समझना पड़ता है. तो मैं क्या करता था जो मुश्किल बातें होती हैं, जिसके निर्णय थोड़े गंभीर होते हैं. मैं मेरे सुबह जो शुरु करता हूं तो कठिन चीजों से शुरु करना पसंद करता हूं. मुश्किल से मुश्किल चीजें मेरे अफसर मेरे सामने लेकर आते हैं, उनको मालूम है कि वो मेरा एक अलग मूड होता है, मैं चीजों को बिलकुल तेजी से समझ लेता हूं,निर्णय करने की दिशा में आगे बढ़ता हूं. मैंने अपना एक नियम बनाया है, कोशिश की है. और जो सरल चीजें हैं दिनभर की थकान के बाद रात देर हो जाती हैं तो चलो भाई अब उनको मैं ज्यादा दिमाग खपाने की जरुरत नहीं वो गलती होने का कारण नहीं है. उन चीजों को फिर में देर रात तक खींच लेता हूं. लेकिन सुबह जब उठता हूं तो फिर कठिन से ही मुकाबला करने निकल पड़ता हूं.

दोस्तों एक और बात, हमें अपने आप से सीखनी चाहिए. आप देखिए, जो लोग जीवन में बहुत सफल हैं, वो हर विषय में पारंगत नहीं होते. लेकिन किसी एक विषय पर, किसी एक Subject पर उनकी पकड़ जबरदस्त होती है.

अब जैसे लता दीदी हैं, लता मंगेशकरजी की पूरी दुनिया में नाम है, हिंदुस्तान की हर जुबा पर नाम है, लेकिन कोई जाकर के उनको कह दे कि आज हमारी क्लास में आइए और geography पढ़ाइए. हो सकता है वो ना भी पढ़ा पाए, पढ़ा भी पाए, मैं नहीं जानता हूं कि वे पढ़ा पाए, या ना पढ़ा पाए. लेकिन लताजी की महारथ geography में शायद न भी हो, लेकिन, संगीत की दुनिया में उन्होंने जो किया हुआ है, एक विषय पर जिस तरह अपना जीवन खपा दिया है, आज वे हर एक के लिए प्रेरणा का कारण बन गई हैं. और इसीलिए, आपको भले कुछ Subjects मुश्किल लगते हों, ये कोई आपके जीवन में कोई कमी नहीं है. आप बस ये ध्यान रखिए की इस मुश्किल लगने वाले Subject की पढ़ाई से खुद को दूर मत कीजिए. उससे भागिए मत.

वहीं टीचर्स के लिए मेरी सलाह ये है कि वो विद्यार्थियों से उनको टाइम मैनेजमेंट के संबंध में, उसके तौर-तरीकों के संबंध में, syllabus के बाहर जाकर भी कभी उनसे बातें करें, उनसे चर्चा करें. उनको गाइड करे. विद्यार्थियों को टोकने के बजाय, उन्हें गाइड करें. टोकना-रोकना उसका प्रभाव मन पे और ज्यादा negative फैलता है. प्रोत्साहित करने से वो concentrated ताकत के रुप में convert हो जाता है. कुछ बातें क्लास में सार्वजनिक तौर पर जरुर कहें ताकि सबका प्रबोधन होगा, लेकिन बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जब किसी एक बच्चे को बुला करके चलते-चलते थोड़ा सर पे हाथ रख करके बहुत ही प्यार से कहें कि, देखो बेटे, देखो भैया, तुम इतना बढ़िया करते हो, जरा देखो इसको जरा थोड़ा ये कर लीजिए. देखिये तुम्हारे में बहुत बड़ी ताकत है. आप देखिए, ये बहुत काम आएगा. बहुत काम आएगा.

एक काम करिएगा. आपके जीवन में ऐसी कौन सी बातें थीं जो कभी आपको बहुत कठिन लगती थीं और आज आप उसको बड़ी सहजता से कर पा रहे हैं. ऐसे कुछ कामों की लिस्ट बनाइएगा, जैसे साइकिल चलाना कभी आपको कठिन लगा होगा. लेकिन अब वही काम आप बहुत सरलता से कर लेते होंगे. कभी तैरने की बात आई होगी बहुत डर लगा होगा, उतरने से भी डर लगा होगा लेकिन आप आज अच्छे से तैरना सीख गए होंगे. जो कठिन था उसको अपने convert कर दिया, आप के जीवन में ऐसी सैकड़ों चीजें होंगी, अगर आप ये याद करके जरा किसी कागज पर लिख लेंगे, तो कभी आपको किसी को भी, मुझसे भी कठिन वाला सवाल पूछना ही नहीं पड़ेगा. क्यूंकि कभी कोई चीज आपको कठिन लगेगी ही नहीं. मुझ पर भरोसा कीजिए दोस्तों एक बार करके देखिए.

Question-3. Neel Ananth, K.M. - Shri Abraham Lingdom, Vivekananda Kendra Vidyalaya Matric. Kanyakumari, Tamilnadu.

Honourable Prime Minister Ji, वणक्कम (मोदीजी: वणक्कम वणक्कम) I am studying 12th standard, in Shri Abraham Kingdom, Vivekananda, Matric. Kanyakumari.

Dear Sir, during this pandemic situation, have to the online situation, we all get more free time than usual. I would like to how, how can we do best use of our free time. My thanks to prime minister for giving me this opportunity.

Answer-

वणक्कम! मम्मी-पापा को पता चलेगा ना कि आप परीक्षा के समय में खाली समय की बात कर रहे हैं, तो फिर देखिएगा क्या होता है. खैर, मुझे ये सवाल बहुत अच्छा लगा कि आप exam के समय भी खाली समय पर ध्यान दे रहे हैं.खाली समय पे चर्चा कर रहे हैं. देखिए दोस्तों, खाली समय, इसको खाली मत समझिए ये खजाना है, खजाना. खाली समय एक सौभाग्य है, खाली समय एक अवसर है. आपकी दिनचर्या में खाली समय के पल होने ही चाहिए, वरना तो ज़िंदगी एक robot जैसी हो जाती है.

दरअसल खाली समय दो तरह के हो सकते हैं -

एक जो आपको सुबह से ही पता है कि आज आप 3 से 4 बजे तक फ्री हैं, या आने वाले रविवार को आप आधा दिन फ़्री हैं. या चार तारीख को छुट्टी है, आप दोपहर तक आपके पास कोई काम नहीं, आपको पता है. लेकिन दूसरा वो जिसका पता आपको Last Moment में चलता है. अगर आपको पहले से ही पता है कि मेरे पास खाली समय है, तो आप अपने parents या अपने बहन-भाई से कह सकते हैं कि, मैं आपकी हेल्प करूंगा. आपको क्या काम करना है, आप क्या कर रहे हैं, मैं क्या Help कर सकता हूं?

दूसरा आप सोचें कि ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो आपको खुशी देती हैं.

थोड़ा भारी भरकम शब्द है - स्वान्त सुखाय. जिसमें से आपको सुख मिलता है आपको आनंद मिलता है, आपके मन को बहलाती हैं, आप ऐसा भी कुछ कर सकते हैं. अब आपने मुझे पूछा है तो मैं भी सोचता हूं कि मैं क्या करना पसंद करता हूं. मैंने अपनी दिनचर्या में Observe किया है कि अगर मुझे थोड़ा सा भी खाली समय मिल जाए और अगर झूला है, तो मेरा मन करता है कुछ पल मैं झूले पर जरुर बैठूं. बहुत थकान है और पांच मिनट का भी समय मिल गया, या फिर मैं कोई काम भी कर रहा हूं, तो अपने खाली समय में झूले पर बैठकर, पता नहीं क्या कारण है लेकिन मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है.

जब आप खाली समय Earn करते हैं, तो आपको उसकी सबसे ज्यादा Value पता चलती है. इसलिए आपकी Life ऐसी होनी चाहिए कि जब आप खाली समय Earn करें तो वो आपको असीम आनंद दे.

यहां यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि खाली समय में किन चीजों से बचना चाहिए, नहीं तो वो ही चीज़ सारा समय खा जायेगी, पता भी नहीं चलेगा और अंत में refresh-relax होने के बजाय आप तंग आ जाएंगे, थकान महसूस करने लगेंगे.

एक ओर मुझे लगता है कि खाली समय में हमें अपनी Curiosity जिज्ञासा, जिज्ञासा बढ़ाने की और ऐसी कौन सी चीजें हम कर सकते हैं जो शायद बहुत productive हो जाएगी. आपकी मां या पिता अगर खाना बना रहे हैं, उसे Observe कीजिए. नई-नई चीजों में अंदर जाने का, कुछ नया जानने का इसका impact सीधा-सीधा दिखाई नहीं देता है पर जीवन में इसका बहुत बड़ा गहरा प्रभाव होता है.

Free Time का एक और बेस्ट यूज़ हो सकता है कि आप कुछ ऐसी गतिविधियों से अपने आप को जोड़ें, जिसमें आपको express कर पाएं, आपकी uniqueness को बाहर ले आ सके.

जिसमें आप अपनी individuality से जुड़ सकें. ऐसा करने के बहुत से तरीके हैं. और आप भी ऐसे बहुत से तरीके जानते हैं. Sports है, music है, writing है, painting है, story writing है, आप बहुत कुछ कर सकते हैं.

अपने thoughts को, emotions को express करने का एक creative तरीका दीजिये. अवसर दीजिए. Knowledge का दायरा कई बार वहीं तक सीमित होता है, जो आपको उपलब्ध है, जो आपके आसपास है. लेकिन creativity का दायरा knowledge से भी बहुत दूर तक आपको ले जाता है. बहुत विस्तार के फलक पर ले जाता है. creativity आपको उस क्षेत्र में ले जा सकती है, जहां पहले कभी कोई नहीं पहुंचा हो, जो नया हो. हमारे यहां, कहा जाता है जहां न पहुंचे रवि वहा पहुंचे कवि. ये creativity की ही तो बात है.

Question-4-A. Aashay Kekatpure - Bangaluru, Karnataka            

नमस्ते hounarable PM Sir, मैं Aashay Kekatpure बैंगलोर से, मेरा सवाल आप से ये है कि बच्चों को  Good Values सिखाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? धन्यवाद.

मुझे एक सवाल जो आया है, वो नमो ऐप पर आया है, उसका विजुअल मेरे पास नहीं, लेकिन मुझे वो सवाल अच्छा लगा इसलिए मुझे लगता है कि मैं जरुर आपसे share करुं. पटना से सवाल है, प्रवीण कुमार ने पूछा है

Question-4-B - Praveen Kumar, Patna, Bihar

सर, आज माँ-बाप के लिए बच्चे बड़े करना, थोड़ा मुश्किल हो गया है. कारण है आज का ज़माना और आज के बच्चे. ऐसे में हम कैसे यह सुनिश्चित करें कि हमारे बच्चों का व्यवहार, आदतें और चरित्र अच्छा हो?

Answer-

प्रवीण कुमार, एक जाग्रत पिता के रूप में शायद मुझे ये पूछ रहे हैं, बड़ा कठिन सवाल है मेरे लिए, मैं कहूंगा कि पहले तोआप स्वयं चिंतन करें, आत्मचिंतन करें. क्या ऐसा तो नहीं है कि जीवन जीने का जो तरीका आपने चुना है, आप चाहते हैं, वैसी ही जिंदगी आपके बच्चे भी जिएं. और थोड़ा सा भी उनमें बदलाव आता है, तो आपको लगता है कि पतन हो रहा है, Values का ह्रास हो रहा है.मुझे बराबर याद है एक बार मैं स्टार्टअप से जुड़े हुए नौजवानों से, मैंने एक समारोह किया. तो बंगाल की एक बेटी जिसने स्टार्टअप शुरु किया है, अपनी पूर career छोड़कर के, तो उसने अपना अनुभव बताया. वो मुझे हमेशा याद रहता है. उस बेटी ने कहा कि मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, career छोड़ दी और स्टार्ट अप शुरु किया और मेरी मां को जब पता चला तो मेरी मां ने तुरंत कहा ‘सर्वनाश! याने इतना मां को झटका लगा, लेकिन बाद में वो बेटी स्टार्ट-अप में बहुत सफल रही थी.

आपको सोचना चाहिए कि आप अपने भाव विश्व में, अपने बच्चे को जकड़ने का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं? और इसलिए, आपका परिवार, आपकी परंपराएं, उसमें मूलभूत मूल्यों को कैसे जोर दें, हमें Identify करना चाहिए.

जैसे हमारे यहां कहा जाता है, जनसेवा ही प्रभुसेवा है. ये हमारे शास्त्रों में मूल्य के रूप में है. लेकिन आपके घर में पूजा-पाठ तो बहुत होती है, दुनिया को दिखता है कि आप बहुत धार्मिक हैं, rituals से भरा जीवन है, लेकिन आप जनसेवा में कहीं नजर नहीं आते हैं. अब जब आपकी संतान यह विरोधाभास देखती है तो उसके मन में conflict शुरु हो जाता है. सवाल खड़े हो जाते हैं, और सवाल उठना स्वभाविक भी है.

उसी प्रकार से भी, हमारे मूल्य हैं कि जीव मात्र से परमात्मा का वास है. उसी प्रकार से हम सब की मान्यता है और हमें ये सिखाया गया है हमारे जीवन मूल्य के रूप में प्रस्थापित हो चुका है, और हमारी सोच है कि जीव मात्र में परमात्मा का वास है. लेकिन आप आपके घर में जो काम करने आते हैं, झाडू-पौछा लगाने आते हैं, लिफ्ट चलाने वाला होता है, आपको स्कूल में छोड़ने वाला ऑटो रिक्शा ड्रायवर है, क्या कभी आपने उनसे उनके सुख-दुख की चिंता और चर्चा कि है? क्या कभी आपने पूछा कि आपके परिवार में तो किसी को कोरोना नहीं हुआ है ना? आपके परिवार के तो सब सुखी हैं ना? आप जिस गांव से आये हो, उस गांव में तो सब ठीक हैं ना? क्या आपने कभी पूछा है? अगर आप ऐसा करते, तो आपको अपने बच्चे को मूल्य नहीं सिखाने पड़ते.

मैं आप पर सवाल नहीं खड़े कर रहा, एक सामान्य व्यवहार की बात कर रहा हूं. कुछ लोग वाकई ऐसा नहीं करते. बच्चे का बर्थ-डे होता है, बहुत सारी तैयारियां होती हैं. कितने लोग अपने घर में काम करने वालों से कहते हैं कि जो भी काम करना है पांच बजे तक पूरा कर दो 6 बजे से जब मेहमान आना शुरु हो जाएंगे तब तुम भी हमारे परिवार के मेहमान के रूप में कपड़े पहनकर के, अच्छे कपड़े पहनकर के परिवार के सभी को लेकर के आ जाना. आप देखिए, आप उनसे क्या कहते हैं? आज घर में बहुत से मेहमान आने वाले हैं, देर तक रुकना पड़ेगा. आप ऐसा कहने की बजाए क्या कहते हैं? देखो कल बहुत मेहमान आने वाले हैं, बहुत काम है, तुम घर बता के आ जाना, देर से आऊंगा, देर से आऊंगी, यानी आपका बच्चा ये देख रहा है, की इतना बड़ा उत्सव है घर में लेकिन वो जो मेरे लिए मेहनत करते हैं दिन-रात वो तो इसमें हिस्सेदार ही नहीं हैं. और तभी उस बच्चे के मन में टकराव शुरु होता है.

मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं. हम कहते हैं बेटा-बेटी एक समान. ये मूल्य हैं हमारे, हमारे यहां देव रूप की जो कल्पना की गई है उसमें स्त्री भगवान का उतना ही महत्व है. लेकिन हमारे घर के वातावरण में, बेटे और बेटी के बीच जाने-अनजाने में जो treatment किया जाता है, उसमें असमानता होती है. उसके बाद जब वही बेटा समाज जीवन में जाता है, तो उसके द्वारा नारी समानता में कुछ न कुछ कमी की संभावना बन ही जाती है.

ये सही है कि परिवार के संस्कार अच्छे होते हैं तो बुराइयां हावी नहीं होतीं हैं, लेकिन 19-20 का ही फर्क होता है, बेटा, बेटे के व्यवहार में कुछ ना कुछ कमी रह जाती है. इसलिए, हमने जो अपना भाव-विश्व बनाया हुआ है, वो जब व्यवहार की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तब बच्चों के मन में अंतरद्वंद शुरू हो जाता है. इसलिए मूल्यों को कभी भी थोपने का प्रयास न करें. मूल्यों को जीकर प्रेरित करने का प्रयास करें.

आख़िरकर, बच्चे बड़े स्मार्ट होते हैं. जो आप कहेंगे, उसे वो करेंगे या नहीं करेंगे, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना होती है कि जो आप कर रहे हैं, वो उसे बहुत बारीक़ी से देखता है और दोहराने के लिए लालायीत हो जाता है. और जब आप इन मूल्यों के साथ, हमारे इतिहास, हमारे पुराण, हमारे पुरखों की छोटी-छोटी बातों को सहजता से जोड़ेंगे, तो बच्चे भी प्रेरित होंगे. आचार व्यवहार में उतारना आसान हो जायेगा.

Question-5.  Pratibha Gupta, Ludhiana, Punjab

नमस्कार सर, मैं प्रतिभा गुप्ता, कुंदन विद्या मंदिर Ludhiana से, सर मेरा आपसे सवाल ये है कि हमें हमेशा काम करवाने के लिए बच्चों के पीछे भागना पड़ता है. हम कैसे उन्हें Self-Motivated बना सकते हैं, ताकि वे अपनी चीजें खुद करें? धन्यवाद.

Answer -

आप बुरा न माने तो मैं ज़रा इस विषय में आपसे अलग राय रखता हूं. मुझे लगता है कि बच्चों के पीछे इसलिए भागना पड़ता है क्योंकि उनकी रफ्तार हमसे ज्यादा है.

ये बात सही है कि बच्चों को सिखाने की, बताने की, संस्कार देने की ज़िम्मेदारी परिवार में सबकी है. लेकिन कई बार बड़े होने के बावजूद हमें भी तो जरा मूल्यांकन करना चाहिए. हम एक सांचा तैयार कर लेते हैं और बच्चे को उसमें ढालने की कोशिश करते रहते हैं. और समस्या यहीं से शुरू होती है. हम इसे social status का symbol बना देते हैं. अक्सर माता-पिता अपने मन में कुछ लक्ष्य तैयार कर लेते हैं, कुछ parameter बना लेते हैं, और कुछ सपने भी पाल लेते हैं. फिर अपने उन सपनों और लक्ष्यों को पूरा करने का बोझ बच्चों पर डाल देते हैं. हम अपने लक्ष्यों के लिए बच्चों को जाने-अनजाने में, माफ करना मुझे मेरा शब्द कहीं कठोर लगेगा जाने-अनजाने में हम बच्चों को instrument मानने लगते हैं. और जब, बच्चों को उस दिशा में खींचने में विफल हो जाते हैं तो ये कहने लगते हैं बच्चों में 'motivation' और 'inspiration' की कमी है.

किसी को भी motivate करने का पहला पार्ट है - Training. Proper training, एक बार बच्चे का मन train हो जाएगा तब उसके बाद motivation का समय शुरू होगा. Training के कई माध्यम, कई तरीके हो सकते हैं.

अच्छी किताब, अच्छी movies, अच्छी कहानियां, अच्छी कविताएं, अच्छे मुहावरे, या अच्छे अनुभव! ये सब एक प्रकार से training के ही tools हैं. जैसे कि, आप चाहते हैं, आपका बच्चा सुबह उठकर के पढ़े. आप उसे कहते हैं, बोलते भी हैं, डांटते भी हैं. लेकिन आपको सफलता नहीं मिलती. लेकिन क्या आपके घर में कभी ऐसी किताबों की चर्चा होती है, जिसमें indirectly सुबह उठने के फायदों की चर्चा हो? हमारे यहां आध्यात्मिक जीवन के लोग ब्रह्म मुहूर्त से ही उनका दिवस प्रारंभ हो जाता है. और उसी के norms का पालन करते हैं.

तो दूसरी और आजकल 5AM Club की भी चर्चा होती है. क्या आपने ऐसी किसी किताब की घर में चर्चा की है, या कोई ऐसी मूवी या documentary देखी है जिसमें इस बारे में वैज्ञानिक तरीके से तर्क-बद्ध तरीके से emotions के साथ बातें बताई गई हो? ये एक बार करके देखिए, सुबह उठने के लिए बच्चे की ट्रेनिंग खुद ही हो जाएगी. एक बार मन train हो गया, मन में बच्चा समझ गया कि सुबह उठने का क्या फायदा है, तो फिर वो खुद motivate होने लगेगा. यही तो Environment Creation होता है, जिसकी घर में सबसे ज्यादा जरूरत है.

आप बच्चे के बचपन का वो समय याद करिए, जब आप उसको गोद में लेते थे. मान लीजिए आपकी जेब में पेन है या आपने चश्मा पहना है, बच्चा उसे खींचता है, चश्मा उतारता है. तो आप क्या करते थे? आप बच्चे को अगर चश्मा वापस लेने की कोशिश करते है तो वो रोता है, पेन वापस लेने की कोशिश करते है तो वो रोता है, तो समझदार मां-बाप क्या करते हैं? उसको एक बड़ा बॉल उसके सामने खड़ा कर देते है, लेकर के खड़े हो जाते हैं. बच्चा क्या करता है? चश्मा छोड़ देता है, पेन छोड़ देता है, बड़ा बॉल खेलने के लिये ले लेता है. न रोता है और आसानी से आप solution निकाल लेते हैं. आप उसका mind divert करके, उसे ज्यादा पसंद की दूसरी positive चीजें देकर उसे motivate करते थे. ये जो काम आपने पहले किया है, जब बच्चा बिल्कुल छोटा था, वही काम आप अब भी कर सकते हैं.

आपने सुना होगा - "एक दीप से जले दूसरा". आपका बच्चा 'पर-प्रकाशित' नहीं होना चाहिए, आपका बच्चा स्वयं प्रकाशित होना चाहिए. बच्चों के अंदर जो प्रकाश आप देखना चाहते हैं, वो प्रकाश उनके भीतर से प्रकाशमान होना चाहिए. और वो आपके जाग्रत सक्रिय प्रयासों से संभव है, आप अपने action में जो बदलाव दिखाएंगे वो बच्चे बहुत बारीक़ी से observe करेंगे.

यहां एक और बात की ओर मैं आपका ध्यान दिलाऊंगा, बच्चों को कभी भी भय पैदा करके, ये होगा, तो ये होगा ऐसा होगा, तो ऐसा होगा. कृपया करके ऐसी कोशिश मत कीजिए. एक प्रकार से वो तरीका लगता तो बहुत आसान है. लेकिन इससे एक तरह से negative motivation की संभावनाए बढ़ जाती हैं. जैसे ही आपने जो हऊआ खड़ा किया है वो खतम हो जाता है, बच्चे का motivation भी खतम हो जाता है. और इसलिए positive motivation साथ-साथ, बार-बार positive re-inforcement पर बल देते रहना चाहिए.

Motivation का जो मंत्र बच्चों के लिए है, एक प्रकार से वह हम सबके लिए भी है. मनुष्य मात्र के लिए है.

Question-6-A.  Tanay, Foreign Student, Samia Indian Model School Kuwait     

नमस्ते Prime Minister Sir, (मोदीजी : नमस्ते) My Name is Tanay, and I am the student of, Samia Indian Model school Kuwait , Sir I have a question to ask How to prepare ourselves for the battle of life? Thank You Sir.

 

Question-6-B  Ashraf Khan - Mussorie, Uttarakhand                

नमो ऐप पर, मसूरी उत्तराखंड श्रीमान असरफ खान ने लिखा है.

सर, हम जब अपने बड़े cousins या दोस्तों से बात करते हैं, तो वे कहते हैं कि अभी स्कूल में तो तुमने जीवन देखा ही कहा हैं. जीवन की असली कसौटी तो स्कूल से बाहर निकल करके होगी. मेरा सवाल यह है की आज हम अपने आप को कल की चुनौतियों के लिए कैसे तैयार करें?

Answer-

तनय, आप तो कुवैत से मुझ से बात कर रहे हो, लेकिन तनय कभी किसी ने इस बात को mark किया है? कि तुम्हारी जो आवाज है वो god gifted है. क्या कभी तुम्हारे मा बाप ने, कभी आपके दोस्तों ने कभी आपके टीचर्स ने कहा है? क्या आपका ध्यान गया है? आज आपका सवाल सुनने के बाद, खैर recorded है लेकिन मैं पक्का मानता हूं की आपको एक बहुत ही विषिष्ठ प्रकार की आवाज परमात्मा ने दी है. कभी उस पर ध्यान दीजिए. ये आपकी बहुत बड़ी विरासत बन सकती है. खैर मैं तनय की बातों की ओर चला गया, लेकिन जो सवाल आपने पूछे हैं.

पहली बात तो ये, कि जो लोग आपको ये कहते हैं, उनके कहने का तरीका भले ऐसा होता होता है, कि वो आपको सलाह दे रहे हैं, लेकिन मन के भीतर की सच्चाई को देखें तो वो अपने आपको हीरो बनाने की कोशिश कर रहा होता है. या फिर वो अपनी असफलताओं को इसलिए बड़ा बनाकर दिखाता है ताकि उसे एक Escape Route मिल सके. और इसलिए वो दिखाता है कि उसके सामने बहुत बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं.

इस विषय में मेरा सीधा-सीधा मंत्र है - एक कान से सुनिए और दूसरे कान से निकाल दीजिए.

हां, ये सवाल बहुत स्वभाविक है कि दसवीं या बारहवीं के बाद क्या? ये हर बच्चे के मन में होता है और न मैं इससे इंकार कर सकता हूं और न कोई और इससे इंकार कर सकता है. बहुतों के लिए ये सवाल चिंता और निराशा फैलाने वाला हो सकता है. दुर्भाग्य से आज के चकाचौंध भरे युग में, celebrity के culture के कारण, और उसका प्रभाव होने के कारण, Student Life में एक धारा बन गई है कि जो टीवी पर आता है, जिसकी अख़बारों में चर्चा होती हो, वैसा कुछ बनना है, वैसा कुछ करना है. ये बुरी बात नहीं है लेकिन जीवन की सच्चाई से ये बहुत दूर है.

ये जो प्रचार माध्यमों में हज़ार दो हज़ार लोग हमारे सामने आते हैं, दुनिया इतनी छोटी नहीं है. इतनी बड़ी विश्व व्यवस्था, इतना लंबा मानव इतिहास, इतनी तेज़ी से हो रहे परिवर्तन, बहुत सारे अवसर लेकर के आते हैं. जीवन की सच्चाई ये है कि जितने लोग हैं, उतनी विभिन्नताएं हैं. जितने लोग हैं, उतने अवसर भी हैं. हमें अपनी जिज्ञासा का दायरा बहुत बड़ा करने की आवश्यकता है, उसको विस्तार देने की आवश्यकता है.

और इसलिए, आवश्यक है कि दसवीं क्लास में, बारहवीं क्लास में भी आप अपने आसपास के जीवन को Observe करना सीखिए. आपके आसपास इतने सारे प्रोफेशन हैं, Nature of Jobs हैं, और बदलते हुए  Nature of Jobs हैं, खुद को train करिए, अपनी skill बढ़ाइए, और उसका लाभ उठाइए. करियर के चुनाव में एक पक्ष ये भी है कि बहुत से लोग जीवन में Easy Route की तलाश में रहते हैं. बहुत जल्दी वाहवाही मिल जाए, आर्थिक रूप से बड़ा status बन जाए, ये इच्छा ही जीवन में कभी-कभी, हर बार नहीं पर कभी-कभी अंधकार की शुरुआत भी करने का कारण बन जाती है. फिर ये अवस्था ऐसी होती है जिसमें सपने पालना और देखना जरा अच्छा लगता है. सपनों में खोए रहना अच्छा लगता है.

सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन सपने को लेकर के बैठे रहना, और सपनों के लिए सोते रहना ये तो सही नहीं है. सपनों से आगे बढ़कर, अपने सपनों को पाने का संकल्प ये बहुत महत्वपूर्ण है. आपको सोचना चाहिए कि आपका वो कौन सा एक सपना है जिसे आप अपने जीवन का संकल्प बनाना चाहेंगे? जैसे ही आप ये संकल्प ले लेंगे, आपको आगे का रास्ता भी उतना ही साफ दिखाई देने लगेगा.

Question-7-A   Amrita Jain, Moradabad, Uttar Pradesh                

माननीय प्रधानमंत्रीजी, प्रणाम, माफ करिएगा मेरा सवाल परीक्षा पर आधारित नहीं है. तो कृपया करके आप इस पर हंसिएगा नहीं, आजकल के बच्चे Proper तरीके से खाना नहीं खाना चाहते. सारा टाइम चिप्स, चॉकलेट और जंक में उनका ध्यान रहता है. आप कृपया करके हमें ये बताइए की हमें इसके बारे में क्या करना चाहिए?

Question-7-B. Sunita Paul - Raipur, Chattisgarh

इसी प्रकार के कुछ और सवाल भी मेरे साथ हैं, और ये नरेन्द्र मोदी ऐप पर Chattisgarh Raipur से Sunita Paul जी ने लिखा है, सर, हमारे बच्चों को हम जो टिफ़िन में देते हैं, वे उस चीज़ को खाते नहीं और हमेशा फ़ास्ट फ़ूड खाने की ज़िद करते हैं. कृपया इस मुद्दे पर हमारा मार्गदर्शन करे.

Answer-

मै समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं ये सारे सवाल सुनकर के मुस्कुराऊं या जोरों से हंस पडूं, अगर इस मुद्दे पर हम मनो-वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ें, तो शायद इसका समाधान आसान हो जाएगा.

हमारी जो traditional खाने की चीजें हैं, मनोवैज्ञानिक रूप से उनके प्रति हम सहज रूप से गौरव का भाव पैदा करें. उसकी जो विशेषता है, उसकी बात करें. खाना पकाने की हमारी जो प्रक्रिया है, किचन की जो Activities हैं, वो घर के बाकी सदस्यों को पता होनी चाहिए कि कितनी मेहनत करने के बाद खाना पकता है. बच्चों के सामने भी ये सारी बातें चर्चा में लानी चाहिए. कैसे खाना पकता है, कितनी देर लगती है, कितने ingredients होते है. उन्हें महसूस होगा कि आखिर कितनी मेहनत का काम होता है और तब जाकर के मेरी थाली भरती है.

दूसरा, आज के जमाने में खाने-पीने की बहुत सारी websites हैं. हेल्दी फूड की भी कोई कमी नहीं हैं. क्या हम इनसे भी जानकारियां जुटाकर ऐसी चीजों को लेकर कोई game develop कर सकते हैं, जो हम हफ्ते में एक बार खेल सकें. जैसे गाजर है, Carrot उसके Importance पर हम बोलें. उसके क्या फायदे होते हैं, क्या लाभ होते हैं, क्या Nutrients होते हैं? ऐसा करके देखें.

दूसरा हम सबके घर में जो family डॉक्टर है, वो डॉक्टर एक प्रकार से मित्र होते हैं. जब कभी उनका घर आना हो तो उनकी बातें पूरा परिवार सुनें कि किस प्रकार के खाने का क्या महत्त्व है. Nutrients कहां से मिलते हैं, क्या खाना चाहिए. वो बता सकते हैं कि आपके घर में क्या problems hereditary हैं, और उनसे बचने के लिए क्या खाना आवश्यक है. इससे भी बच्चों को फायदा होगा.

तीसरा आप टीचर से Request कर सकते हैं कि आप बच्चों में ये क्या आपको तकलीफ हो रही है, ख़ासकर के खाने के विषय में, टीचर को समझाइए, टीचर को विश्वास में लीजिए. आप देखिए टीचर बड़ी कुशलता से कथा कहते-कहते बात करते-करते हंसी मजाक में उसके दिमाग में भर देगा की ये क्यों करना चाहिए. और टीचर के कहने का बच्चों पर अलग ही असर होता है. हमें भी कुछ-कुछ नए experiment करते रहना चाहिए. मैंने काफी ऐसे उदाहरण देखे हैं, जहां परिवार में Traditional खाना ही बच्चों को Modern रंग रूप में बनाकर दिया जाता है. तो उससे बच्चों में भी उसको लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण पैदा होता है. खैर, ये मेरे syllabus के बाहर का विषय है लेकिन हो सकता है शायद मेरी कुछ बातें काम आ जाए आपको.

Question - दिव्यांका नमस्कार, दिव्यांका क्या पढ़ती हो

जी सर मैं कॉमर्स की छात्रा हूं

और पुष्कर की ही रहने वाली हो

जी सर

तो पुष्कर की कोई पवित्र चीज का मुझे वर्णन करोगी, जो मुझे सुनने के लिए बताओगी कुछ. क्या है पुष्कर की विशेषता.

जी, पुष्कर में एक मात्र ब्रह्मा मंदिर है

हां...

और जो पुष्कर राज है वह 68 तीर्थों का गुरु है

अच्छा ब्रह्मा का क्या रोल रहा है

जी उन्होंने पृथ्वी को क्रिएट किया है

अच्छा, अच्छा बताइये, दिव्यांका क्या सवाल था आपके मन में.

Question- 8. दिव्यांका पराशर, मुखिया कॉलोनी, परिक्रमा मार्ग, बड़ी बस्ती, पुष्कर.    

सर, मेरे कुछ मित्र ऐसे हैं जिनकी memory average है, वे किसी भी विषय को कितना भी पढ़ लें, वे परीक्षा में उसको याद नहीं रख पाते हैं. सर वे ऐसा क्या करें कि वे उस विषय को याद रख सके.

Answer- 8-

अच्छा तो आपको मैमोरी की जड़ी-बूटी चाहिए.

जी सर...

देखिए दिव्यांका, (जी सर)सचमुच अगर आपको अगर भूल जाने की आदत है तो मैं कहता हूं की आप मुझे पूछती ही नहीं. क्योंकि आप सवाल भी भूल जाती. आप सबसे पहले अपनी डिक्शनरी से इस शब्द को Delete कर दीजिए. आप सोचिए ही नहीं कि आपके पास याद करने की शक्ति नहीं है. अगर आप खुद से जुड़ी कुछ घटनाओं को देखें, तो आपको पता चलेगा कि वास्तव में आपको बहुत सारी चीजें याद रहती हैं.

जैसे आपकी Mother Tongue. क्या Mother Tongue आपको किसी ने बहुत ग्रामर के साथ पढ़ाया था क्या? सिखाई था क्या?

नहीं नहीं... नहीं सर

क्या स्कूल में आपने सीखी या किताब में – कहीं, जी नहीं, हां ये सब सुनकर के सीख ली. तो यही वो चीजें हैं, ज़रा सोचिए कि आपको जो पसंद है. क्या इन चीजों को याद रखने के लिए आपने कभी कोशिश की थी? वो बातें जिनसे आप पूरी तरह जुड़ गए हैं, मग्न हो गए हैं. वो बातें जो आपका हिस्सा बन गई हैं, आपके विचार प्रवाह का हिस्सा बन गई हैं. उन्हें आप कभी नहीं भूलते है.

दूसरे शब्दों में कहूं तो ये memorized नहीं है, actually ये Internalised है.

और Internalised करना, यही इसका एक अच्छा रास्ता है और इसलिए आपको याद करने पर जोर देने के बजाय, आपको उसे जीने की कोशिश करनी चाहिए, सहजता, सरलता, समग्रता के साथ. आपके पास भी वही सारी शक्तियां हैं, जो किसी बहुत Talented व्यक्ति के पास होती हैं. सोचिये अपने भाई या बहन के साथ अगर आपका झगड़ा हुआ हो, तो वो आपको एकदम याद रहता है. आप उसे भूलते नहीं हैं. यहां तक कि आपको यह भी याद रहता होगा कि उस समय आपने, आपके भाई-बहन ने कौन से कपड़े पहने थे. आप खड़े-खड़े लड़ रहे थे कि दौड़ते हुए लड़ रहे थे. सब याद होगा, एक एक वाक्य याद होगा.

जी सर...

यानी इसका एक मतलब यह है कि आप उसमें Fully Involved थे, आप उस क्षण को पूरी तरह जी रहे थे. साफ है कि चीजें याद रहें, properly recall कर सकें उसके लिए आप जिस क्षण में है, उस क्षण में ही रहना और उसमें पूरी तरह से Involved रहना बहुत जरूरी है. यानी हम पढ़ाई कर रहे हैं, किताब हाथ में है और मन है खेल के मैदान में, सहेलियों के साथ, दोस्तों के साथ, फिर तो मामला गड़बड़ हो जाता है.

आगे जाकर आप में से कोई विद्यार्थी अगर psychology पढ़ेगा, तो उसमें Memory By Association का concept विस्तार से समझाया जाएगा. आप याद कीजिए कि स्कूलों में सुबह assembly में राष्ट्रगान होता है. अब जन-गण-मन हर कोई गाता है, लेकिन क्या कभी आपने जन-गण-मन गाते समय, आपने उस राष्ट्रगान के साथ देश में travel किया क्या? आप उसके साथ जो शब्द आते हैं उन शब्दों के साथ अपने आपको visualize कर पाएं कि नहीं कर पाए. पंजाब को, गुजरात को, महाराष्ट्र को, बंगाल को मन ही मन राष्ट्रगान गाते समय travel किया क्या? आपको एकदम से याद होना शुरु हो जाएगा.

मन ही visualise करेंगे तो आपको अच्छे से याद रह जाएगा. इसका तो एक फ़ायदा और होगा, आप इस देश के साथ भी एकाकार होते चले जाएंगे. यानी Involve, internalize, associate और visualize. Memory को sharp करने के लिए इस formula पर आप चल सकते हैं. 

मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं, आपके पास नोट-बुक्स होती हैं, अलग-अलग विषयों की किताबें होती हैं. आप जब भी घर से निकलें, ये तय करके निकलें की बैंग में इतने नंबर पर इस विषय की नोटबुक होगी और इतने नंबर पर इस विषय की किताब होगी. चौथे नंबर पर हो सकती है तीसरे नंबर पर हो सकती है, और आपने अगर तीन नंबर पर हिस्ट्री की किताब रखी है, पांच नंबर पर भूगोल की किताब रखी है, तो जब भी आप हिस्ट्री की किताब निकालने जाएं, तो बिलकुल आंख बंदकर के तीन नंबर की किताब निकालते हैं.

देखिएगा, आपका confidence level कितना बढ़ जाएगा.

चलिए मुझे अच्छा लगा, आपसे बात करने का मौका मिला और मैं राजस्थान के लोगों को भी और पुष्कर की पवित्र धरती को भी आज यहां से नमन करता हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद.

धन्यवाद.

Question- 9. Suhaan Sehgal, Ahlcon International, Mayur Vihar, Delhi

नमस्ते जी,

नमस्कार सर,

हां, बताइए

मेरा प्रश्न ये है कि जब हम किसी प्रश्न का उत्तर याद करते हैं, तो वह हमें अच्छी तरह से याद हो जाता है. लेकिन जब हम स्कूल में लिखना शुरु करते हैं, तो question paper को देखकर ही हम अचानक से सबकुछ भूल जाते हैं. सर कृपया करके यह बताइए की ऐसा क्यों होता है?

आपका शुभनाम क्या?

Suhaan Sehgal

अच्छा सहगल जी आप पढ़ते कहां है?

Ahlcon International School

अच्छा, ये सवाल पहले किसी को पूछा है?

नहीं सर...

नहीं पूछा?

मम्मी-पापा को पूछा?

नहीं सर...

टीचर को पूछा?

नहीं सर...

लो बड़े कमाल के हो यार, मैं ही मिला क्या तुम्हें?

Answer-

लेकिन आपका सवाल मैं समझता हूं, ज्यादातर विद्यार्थियों के मन में रहता है. जब मैं भी तुम्हारी तरह पढ़ता था न तो ये बात तो मन में रहती थी कि यार पता नहीं क्यूं याद नहीं आ रहा है?

देखिए परीक्षा हॉल में जाते समय आपको अपने मन को बिल्कुल शांत करके जाना चाहिए.

मैं अभी टीवी स्क्रीन पर आपको देख रहा हूं, इतना शांत आपका चेहरा है. इतने विश्वास के साथ आप बैठे हैं, मुस्कुराते भी हैं ये, ये जो अवस्था है ना examination में जाए ना तभी भी ऐसा ही रहिए, आपको कभी नहीं भूलेंगे.

आपका मन अशांत रहेगा, चिंता में रहेगा, आप घबराएं हुए रहेंगे तो इस बात की संभावना बहुत ज्यादा होगी कि जैसे ही आप Question Paper देखेंगे, कुछ देर के लिए सबकुछ भूल जाएंगे. इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि आपको अपनी सारी टेंशन परीक्षा हॉल के बाहर छोड़कर जाना चाहिए. और आपको ये भी सोचना चाहिए कि जितनी तैयारी आपको करनी थी, आपने कर ली है. अब आपका फोकस प्रश्नों के अच्छे से उत्तर देने में होना चाहिए. आप इस बात से भी नहीं घबराएं कि कुछ नया आ गया तो क्या होगा, कुछ ऐसा आ गया जो आपने पढ़ा ही नहीं तो क्या होगा?

और मैं सभी को कहूंगा, परीक्षा के तनाव को कम करने के लिए, बिना टेंशन लिए, परीक्षा देने के लिए, बहुत सारी activities, बहुत सारे उपाय आपको exam warrior book में दिए गए हैं. और अभी भी exam warrior book को एक मैंने नया एडिशन, मुझे कोरोना में थोड़ा समय मिल गया तो मैंने इनको थोड़ा improvement भी किया है कुछ एडीशन भी किया है. इस बार इसमें बच्चों के लिए ही मंत्र नहीं हैं, बल्कि मैंने parents के लिए भी काफी कुछ लिखा है. कई सारी activities नमो ऐप पर भी दी हुई हैं. आप इसमें participate करके, अपने मित्रों के साथ share भी कर सकते हैं. और मुझे विश्वास है, थोड़ा सा प्रयास कीजिए, मन में से ये निकल जाएगा और आपको पक्का फायदा होगा. और आपके साथियों, और मैं ये आपसे चाहूंगा कि आपको जब भी फायदा हो तो मुझे लिखकर दीजिए. exam warrior पढ़कर मुझे चिट्ठी लिखिए. लिखोगे ना?

जी सर

वाह... शाबास...

Thank You Sir, धन्यवाद

 Question- 10. Dharvi Bopat - Global Mission International School, Ahmedabad       

नमस्ते जी,

मेरा नाम Dharvi Bopat है, मैं गुजरात अहमदाबाद के Global Mission International School के संस्कार धाम के 11वीं commerce की छात्रा हूं. श्रीमान, इस कोरोना काल में उद्योग, व्यापार, सरकार को भी तकलीफ आई होगी. लेकिन क्या आपने सोचा है कि विद्यार्थी को क्या तकलीफ आई? इस संकट को मैं अपने जीवन में किस रूप में याद रखूं? ऐसा लगता है की हम छात्रों का एक साल निरर्थक हो गया हो. मेरी जगह आप होते तो क्या करते? आपका मार्गदर्शन हमें दिशा देगा. धन्यवाद

उत्तर-

Dharvi आपका छोटा भाई है, बड़ा भाई-छोटा भाई कोई है

सर छोटी बहन है

हैं, छोटी बहन है... अच्छा छोटी बहन को ऐसे ही डांटती हो जैसे अभी कह रही थी.

छोटी बहन है सर, नहीं सर

ऐसे आंखों खोलकर के बोल रही थी, अच्छा साबरमती आश्रम पहले आई थी, या आज पहली बार आई हो.

सर first time आई हूं आज

first time आई हो, कितने साल से अहमदाबाद में रह रही हो?

6 Years Sir

अच्छा, तो छह साल से रह रही हो और आपको कभी मन नहीं कर गया, कि भारत की आज़ादी का इतना महत्वपूर्ण स्थान वहां कभी जाना चाहिए. आज तो सुबह से आ गए होंगे आप लोग.

जी सर, बिलकुल

तो आपने देखा क्या आज, सब चीजें देखी क्या?

हां सर देखी

मन को शांति का अनुभव हुआ?

हां सर बहुत शांति का अनुभव हुआ.

देखिए जाकर के अपने संस्कार धाम के दोस्तों को भी कहो कि साबरमती आश्रम जाना चाहिए और अपने परिवार और मित्रों को भी कहो कि साबरमती आश्रम जाना चाहिए. और वहां कि शांति का अनुभव करना चाहिए.

कुछ पल मौन, कुछ पल मौन वहां बैठना चाहिए, करोगे?

जी सर, बिलकुल सर, हां सर

अच्छा, चलिए अब आपके सवाल पर आता हूं. मैं तो एकदम से Dharviको उपदेश ही देने लग गया था.

देखिए आपकी बात बिलकुल सही है.

जहां तक कोरोना का प्रश्न है, मैं तो इसे इस रूप में देखता हूं कि जो गलती आपने नहीं की, उसका ख़ामियाज़ा आपको उठाना पड़ा. ये आपके लिए जीवन की एक सीख है कि कई बार जीवन में बहुत कुछ अचानक घटता है, अकल्पनीय घटता है. और इन घटनाओं पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता. कोरोना में भी हम कह सकते हैं कि बच्चों का, युवाओं का जो नुकसान हुआ है, वो बहुत बड़ा है. बचपन के लिए तो एक साल का नुकसान बड़ी इमारत की नींव में एक खालीपन जैसा है. इस कमी को भरना आसान नहीं है.

School Age मतलब?

हंसना, खेलना, मिट्टी में खेलना, मिट्टी उछालना, गर्मी, सर्दी, बरसात हर चीज का आनंद, दोस्तों के साथ, क्लास रूम में टीचर्स के साथ, गप्पे मारना, बातें करना, घर की छोटी सी भी घटना चारों और बता देना. उनके बीच रहना, ये सब जीवन की विकास यात्रा के लिए बहुत अनिवार्य होता है. इन सब चीजों से आप सहज ही कितना कुछ सीख सकते हैं.

आपको भी लगता ही होगा, कोरोना काल के पहले का समय आप याद करते होंगे तो सोचते होंगे कि कितना कुछ miss किया है. लेकिन कोरोना काल में अगर काफी कुछ खोया है, तो बहुत कुछ पाया भी है. कोरोना की सबसे पहली सीख तो यही है कि आपने जिस चीज को, जिन-जिन लोगों को मिस किया, उनकी आपके जीवन में कितनी बड़ी भूमिका है, ये इस कोरोना काल में ज्यादा पता चला है. आपको इस बात का अहसास हुआ कि किसी को भी for granted नहीं लेना चाहिए. खेलकूद हो, स्कूल में Physical Classes हो, या फिर आपके घर के पास सब्जी बेचने वाले, कपड़े प्रेस करने वाले, पास के बाजार के दुकानदार, जिन लोगों को, जिन बातों को आपने routine समझ लिया था, उनका जब miss करते हैं तब उनका सबका महत्व हम सबको अनुभव होता है, आपको भी पता चला है. इसलिए, इस दिशा में आपको लगातार जागरूक रहना चाहिए और Lifelong इस Lesson को याद रखना चाहिए.

कोरोना के बाद भी इन चीजों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. वहीं आपको ये भी याद रहना चाहिए जीवन को सच्चे अर्थ में जीने के लिए कितनी कम चीजों की जरूरत होती है. दूसरा, इस एक साल में आपको कहीं न कहीं जाने-अनजाने में आपको ख़ुद के भीतर झांकने का, ख़ुद को जानने का एक अवसर भी मिला होगा.

कोरोना काल में एक और बात ये भी हुई है कि हमने अपने परिवार में एक दूसरे को ज्यादा नज़दीकी से समझा है. कोरोना ने social distancing के लिए मजबूर किया, लेकिन परिवारों में emotional bonding को भी इसने मज़बूत किया है. कोरोना काल ने ये भी दिखाया है कि एक संयुक्त परिवार की ताकत क्या होती है, घर के बच्चों के जीवन निर्माण में उनका कितना रोल होता है. मैं चाहूंगा कि social science के लोग, हमारी universities इस पर research करें. कोरोना काल के family life पर study करें. कैसे इस संकट से मुकाबला करने में संयुक्त परिवार ने समाज को ताकत दी, इस पहलू को खंगालें!

कोरोना आने के बाद ये जो आयुर्वेदिक काढ़ा, पौष्टिक भोजन, साफ-सफाई, immunity ऐसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर हम सबका ध्यान गया है. इन सबके लिए लोगों ने जो-जो किया, वो अगर पहले से करते आ रहे होते तो शायद परेशानी इससे भी कम होती. लेकिन अच्छा है, अब ये बदलाव लोगों ने अपने जीवन में शामिल कर लिया है.

और इसीलिए, मैं यही कहूंगा ये बहुत बड़ी बात है कि परिवार के बच्चे ऐसे गंभीर पहलुओं पर सोच रहे हैं, बात कर रहे हैं.

धन्यवाद बेटा, धन्यवाद,

Question- 11. Krishty Saikia - Kendriya Vidyalaya IIT Guwahati,

माननीय प्रधानमंत्री महोदय, मैं Krishty Saikia, Kendriya Vidyalaya IIT Guwahati, दसवीं कक्षा की छात्रा हूं. और असमवासियों की ओर से आपको प्रणाम. सर, नई पीढ़ी के एक बच्चे के तौर पर हम अपने parents और अपने बीच के generation gap को हमेशा कम करना चाहते हैं. Prime Minister Sir, हम ये किस प्रकार कर सकते हैं? कृपया अपने मार्गदर्शन दीजिए.

क्या नाम बताया बेटा?

सर, Krishty Saikia

इतनी बढ़िया हिन्दी कैसे बोल लेती हो?

धन्यवाद सर

Answer-

चलिए आपका सवाल तो बहुत अच्छा है. एक विद्यार्थी के रूप में आपने जो सवाल पूछा है, उसके लिए मैं आपकी बहुत सराहना करता हूं. ये बताता है कि आप इस मुद्दे को लेकर कितने संवेदनशील हैं. आप न केवल इस विषय को समझ रहे हैं, बल्कि दो पीढ़ियों के बीच generation gap कम हो, इसका भी प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन मुझे parents से इस विषय पर बात करनी है. एक बात जो Parents को decide करनी है क्या वो बुढ़ापे की ओर जाना चाहते हैं, या फिर अपनी उम्र कम करना चाहते हैं. और आप भी बेटा, अपने मम्मी-पापा को ज़रुर ये सवाल पूछना. अगर Parents बुढ़ापे की तरफ जाना चाहते हैं तो बेशक अपने बच्चों के साथ distance बना लें, gap बढ़ाते रहें. अगर आपको नवजीवन की ओर आगे बढ़ना है, अपनी उम्र घटानी है, युवा बने रहना है तो आप अपने बच्चों के साथ gap कम कीजिए.

Closeness बढ़ाइए. ये आपकेफायदेवाला है. आप याद करिए, जब आपका बच्चा एक साल की उम्र का था तो आप उसके साथ कैसे बातें करते थे? तब आप उसे हंसाने के लिए कैसी-कैसीआवाजें निकालते थे? आप अपने चेहरे के भांति-भांति के expressions बनाकर कैसे उससे बात करते थे. ऐसा करते हुए क्या कभी आपने सोचा कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा?

कभी आपने सोचा कि लोग आपको ऐसा करते हुए देखेंगे तो ये कहेंगे कि ये कैसे चेहरे बना रहा है, कैसी आवाज निकाल रहा है? क्या कभी उस समय आपने ये सोचा कि आपके बच्चे के मन में क्या चल रहा होगा? आपको उस समय आनंद आया, इसलिए आपने ये किया. आपने किसी की परवाह नहीं की यानी आप सब कुछ छोड़कर खुद एक बच्चे बन गए.

बच्चे से खेलने के लिए आप खुद खिलौना बन गए और बच्चे के खिलौनों से भी उतना ही चाव से खेले. आप याद करिए, कभी आप घोड़ा बने होंगे, कभी बच्चे को पीठ पर बैठाकर चले होंगे, कभी कंधे पर बैठाकर घर भर घूमे होंगे, कभी चारपैर करके चले होंगे, बच्चा रोया होगा तो उसे चुप कराने के लिए आप भी झूठ-मूठ का रोए होंगे. तब आपको कोई फर्क नहीं पड़ता था कि देखने वाला क्या कहेगा, घर के बाकी लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, दोस्त क्या कहेंगे कुछ नहीं सोचा. क्या कभी सोचा था? आप उसका आनंद लेते हैं, और ऐसा बच्चे के 5- 6 साल की उम्र तक चलता रहता है. जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो एक लेवल पर mentality ऐसी हो जाती है कि मां-बाप बच्चे को dominate करना चाहते हैं. बच्चे को हर चीज सिखाना चाहते हैं. अचानक जो दोस्त थे, वो दोस्त न रह कर बच्चे के instructor बन जाते हैं. और कभी कभी तो inspector भी बन जाते है.

साथियों, बच्चा जब बाहर की दुनिया में पैर रखता है तो बहुत सी बातें observe करता है. घर में जो देखा था, उससे कुछ ज्यादा कुछ अलग कुछ नया वो देखने लगता है. उस समय आपकी ये जागरूक जिम्मेदारी है कि उस नए वातावरण में आपका बच्चा और अधिक फले-फूले. और इसका उत्तम तरीका है कि आप उसके मन से जुड़ें, उसके मन से ही करें और उसकी हर बात को emotionally attach होकर के सुनें. ऐसे नहीं की फोन कर रहे हैं और वो बोल रहा है, बिलकुल उसके साथ जुड़िए. आपको जो पसंद नहीं, अगर वो काम आपका बच्चा करके आया है, तो उसे डांटिए मत, टोकिए मत, बस सुनते रहिए, सुनते समय उसे लगना चाहिए कि आप उसे कितना प्यार करते हैं. हां लेकिन जो चीज अच्छी नहीं है, उसको मन में register करकर रखिए और ये Growing Age के बच्चों के लिए करना बहुत जरूरी होता है.

आप जितना हो सके उसकी बात सुनिए, उसकी बात समझिए. आप Instructor बनकर उसे सुबह से शाम तक क्या करना है, ये मत समझाइए. बार-बार ये मत पूछिए कि मैंने ये कहा था, क्या-क्या किया. बस अपनी आंखें खुली रखिए, कान खुले रखिए, उस पर ध्यान रखिए. उसमें सुधार से जुड़ी जो बातें आपने रजिस्टर की हैं, जो आपको ठीक नहीं लगा, उसे ठीक करने के लिए बहुत विचार करके एक environment create करिए ताकि उसे खुद ही लगे कि वो कहां गलत कर रहा है.

जब मां-बाप बच्चों के साथ हम-उम्र बनकर ही जुड़ते हैं, तो कोई Issue नहीं होता है.

जैसे बच्चा कोई नया गाना सुन रहा है, कोई नया म्यूजिक सुनकर आनंद ले रहा है तो आप भी उसके साथ उस आनंद में शामिल होने की कोशिश करिए. आप उसे मत कहिए की तीस साल पहले हमारे जमाने में तो वो गाना था, हम वो बजाएंगे, नहीं ऐसा मत करो. वो जो गाना उसे पसंद है आप उससे जुड़िए, आनंद लीजिए ना.

ये समझने की कोशिश तो करिए कि आखिर ऐसा क्या है उस गाने में कि आपका बच्चा उसे पसंद कर रहा है. लेकिन होता क्या है कि हम देखते हैं ठीक इसी समय कुछ माता-पिता ये कहने लगते हैं कि - ये क्या बेकार का गाना सुन रहे हो, असली म्यूजिक तो हमारे समय में होता था, अब तो जो बनता है, वो सिर्फ़ शोर-शराबा होता है. होता क्या है कि बच्चा आकर के आपको कोई बात बताता है, वो बताता है कि आज स्कूल में हमने ये किया तो कहीं आप अपनी ही कहानी लेकर तो नहीं बैठ जाते हैं. कि अरे ये तो ऐसा ही, क्या है, क्या नई चीज है? ये तो वैसा ही है.

अपने बच्चे के साथ उसकी generation की बातों में, उतनी ही दिलचस्पी दिखाइएगा, आप उसके आनंद में शामिल होंगे, तो आप देखिएगा generation gap कैसे खतम हो जाती है. और शायद जो बात आप कहना चाह रहे हैं वो उसके समझ में भी आ जाए और इसलिए generation gap को कम करने के लिए बच्चों और बड़ों को एक दूसरे को समझना होगा. खुले मन से गपशप करनी होगी, खुलकर बातें करनी होगी. समझना होगा, सुनना होगा और फिर अपने आप को बदलने की तैयारी भी रखनी होगी. चलिए असम से इतना बढ़िया सवाल मुझे मिला, जरा मैं ज्यादा लंबा ही जवाब दे गया. लेकिन मुझे अच्छा लगा, बहुत-बहुत धन्यवाद बेटा.

धन्यवाद सर

Question- 12. Shreyaan Roy, Central Model School,

नमस्ते सर

नमस्ते

I amShreyaan Roy of class ten, I study in Central Model School, Barakpur, Kolkata.

Sir, in the exam season, more than exams what scares us is what happens after exams. What will happen if our result doesn't come so good. Is failure in examination is actually a fail for us in our life?

उत्तर-

अरे यार ऐसा कैसे सोचते हो? अगर आप एग्जाम वॉरियर किताब पढ़ते, तो ये सारे सवालों के जवाब आप खुद ही लोगों को दे देते. लेकिन आपका सवाल महत्वपूर्ण है. और शायद ऐसे सवाल बार-बार उठते भी हैं. और बार-बार जवाब देने भी होते हैं. एक बार कहने से बात बनने वाली नहीं है.

और मैं ये बात पूरे खुले मन से कहना चाहता हूं कि दुर्भाग्य से शिक्षा के क्षेत्र में और पारिवारिक जीवन में सोचने का दायरा इतना सिमट गया है. परीक्षा में आपके जो नंबर आए, वो आपकी योग्यता का पैमाना नहीं हो सकते. भारत ही नहीं, दुनिया में आप ऐसे बहुत से सफल लोगों को देखेंगे जो क्लास में नंबरों में भले अच्छे नहीं थे, लेकिन आज वो अपनी फील्ड में सर्वश्रेष्ठ हैं. ये परीक्षा सिर्फ़ एक पड़ाव है. इस परीक्षा में नंबर कम आने का मतलब, ये नहीं होना चाहिए कि आपके जीवन में बहुत बड़ा नुकसान हो गया.

हां, भविष्य में आपको जिस एक चीज से आपको बचकर रहना चाहिए, उसके बारे में, मैं आपको जरूर बताऊंगा. एक ये नई तरह की कुरीति आ रही है समाज में, जिसे हम destination fever कह सकते हैं. मतलब, दूसरे अगर किसी एक Destination पर हैं तो उन्हें देखकर अपना Direction तय करना. आपका कोई रिश्तेदार कहीं जाकर सफल हुआ, आपको लगता है वहां जाकर आप भी सफल हो जाएंगे. कोई असफल हुआ तो आपको लगता है हम भी उसी फील्ड में गए तो असफल हो जाएंगे. हमें लगता है वो स्टूडेंट इस दिशा में गया, इस क्षेत्र में गया, ये बना, उस क्षेत्र में उसने ये नाम कमाया, तो हम भी वही करेंगे, तभी हमारा जीवन सफल होगा. ये सोच सही नहीं है दोस्तों. इसी सोच का परिणाम है कि बहुत से students इतने तनाव में जी रहे हैं.

आप जो पढ़ते हैं, वो आपके जीवन की सफलता और विफलता का पैमाना सिर्फ़ यही एकमात्र नहीं हो सकता. आप जो जीवन में करेंगे, वो आपकी सफलता और असफलता को तय करेंगे. आप लोगों के प्रेशर, सोसाइटी के प्रेशर, माता-पिता के प्रेशर, इन सबसे बाहर निकलिए.

कई बार हमें potential को जानने के लिए मैदान में कूदना ही पड़ता है. मुझे लगता है कि आपको अपना जवाब मिल गया होगा.

साथियों, मुझे बहुत अच्छा लगा, आप सबसे virtually मिलने का मुझे मौका मिला. मैं आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं. वाकई मुझे बहुत आनंद आया. आप सभी से बात करना मेरे लिए भी एक उमंग से कम नहीं होता है. आनंद से कम नहीं होता है. मुझे लगता है कि आप सभी को भी जरूर उसमें से कुछ ना कुछ बातें काम आएंगी. जरुरी नहीं है कि मैंने जो कहा है उसी पर चलना चाहिए. सोचिए, अपने तरीके से सोचिए,

साथियों, आज मैं आपको एक बड़े एग्जाम के लिए तैयार करना चाहता हूं. ये बड़ा एग्जाम है जिसमें हमें शत-प्रतिशत marks लेकर पास होना ही है. ये है - अपने भारत को आत्मनिर्भर बनाना.

ये है - Vocal for Local को जीवन मंत्र बनाना.

मेरा एक आग्रह है, जब आपकी बोर्ड परीक्षाएं समाप्त हो जाएं तो परिवार के लोगों के साथ मिलकर एक लिस्ट बनाएं. सुबह से लेकर रात तक आप जिन चीजों का उपयोग कर रहे हैं, उनमें से कितनी चीजें विदेशी धरती पर बनी हैं और कितनी चीजों में भारत मां की मिट्टी की सुगंध है, कितनी चीजें किसी देशवासी की मेहनत से बनी हैं.

इसके अलावा एग्जाम के बाद के लिए एक task आपको देना चाहता हूं. आप सब जानते हैं कि हमारा देश आज़ादी के 75 साल के उपलक्ष्य में आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. अमृत महोत्सव में हमारे स्वाधीनता सेनानियों के बारे में आप सब लोग जानें, आज़ादी की लड़ाई के बारे में जानें, इसके लिए देश ने एक अभियान शुरू किया है. आपको इस अभियान से जुड़ना है. आप अपने राज्य की आज़ादी की लड़ाई से जुड़ी 75 घटनाएं खोजकर निकालिए. ये किसी व्यक्ति के संघर्ष में जुड़ी हो सकती हैं, किसी क्रांतिवीर से जुड़ी हो सकती हैं. इन घटनाओं को आप अपनी मातृभाषा में विस्तार से लिखिए. इसके अलावा हिंदी-इंग्लिश में लिख सकें तो ये भी अच्छा होगा.

आप इसको सालभर का project बनाइए और digital तरीके से इसे कैसे करें, इसके लिए अपने टीचर्स से भी guidance लीजिए. आप अपने टीचर्स से बात करिए, अपने parents से, दादी-दादा से बात करिए, आप क्या कर सकते हैं, इस पर चर्चा करिए.

साथियों, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है-

"मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है

मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है

मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है"

आप खुद भी देखिए, जब हमारी इच्छाएं, हमारे लक्ष्य, देश की सेवा से जुड़ जाते हैं, तो हम करोड़ों जीवनों से जुड़ जाते हैं. इसलिए, बड़े सपने रखने हैं, देश के लिए सोचना है. मुझे पूरा भरोसा है, आप ये एग्जाम बहुत अच्छे marks से पास करेंगे, उसके बाद जीवन में बहुत आगे जाएंगे. इसलिए, खूब पढ़िए, खूब खेलिए, खूब मस्ती करिए. रिज़ल्ट के बाद मुझे अपने संदेश भी जरूर भेजिएगा. मुझे इंतज़ार रहेगा.

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, सभी मेरे युवा साथियों का नन्हें-नन्हें दोस्तों का बहुत-बहुत धन्यवाद!

अनेक-अनेक शुभकामनाएं.

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Source: PIB

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